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Tuesday, January 4, 2011

तीन रंग

माँ, बाबा क्यूँ चले गए?
अभय की बाल हठ ने पुछ लिया था वो सवाल,
माँ का जवाब लिए छलक रहे आंसुओं से हो रही थीं आँखें लाल.
माँ - बेटा, वो भगवान जी के सिपाही बन गए!
अभय के नन्हे हाथों ने थाम लिया खिड़की पर टंगा वो छोटा सा तिरंगा,
खिलौना बंदूक अपने कंधे पर लटका माँ के सामने बोला.
अभय - माँ, बाबा की तरह मुझे भी लपेट दो इस तिरंगे में,
भगवान जी का सिपाही बन कर अपने पिता की तरह लड़ने की मोह है इन हाथों में!
तिरंगे से लिपट कर नहीं इसे सलामी देकर अपने पापा के असूलों पर चलो,
अपने नन्हे हाथों से माँ के सफ़ेद आंसु छीन लो!

अभय और उसकी माँ ने मुड़ कर देखा,
जनरल को सलामी देने देशभक्त तिरंगा खड़ा था.
नन्हे, अभय को गोद में लिया लपक,
और ले चला दीवार की तरफ जहाँ टंगे थे वीरता के स्वर्ण पदक.
तिरंगा - ये, तुम्हारा वंश है अभय,
भारत के इन शेरों में तुम भी अपने स्थापित करो निशान,
तिरंगे को लेकर, तुम चलो सीना तान.
देखो, अपनी माँ के पहेने सफ़ेद कफ़न को,
उन्होंने अपना फ़र्ज़ है निभाया,
तुम्हारे पापा के जाने के बाद भी उन में कायम है साहस और द्ढ़ता,
कभी आंच न आने देना उनके गर्व को.
ममता से भरी इस नारी शक्ति के तुम बनो सिपाही,
हर योद्धा सिर झुकाएगा जब चलोगे माँ की थामे कलाई.
तिरंगा के जाने के बाद, लिपट गया अभय माँ के आंचल से,
परिचय करा दिया था तिरंगा ने उसे सफ़ेद रंग की अहमियत से!

अब्बा, दुसरे रस्ते से मस्जिद चलते हैं!
बेटी, खुदा के घर मुड़ जाती है हर सड़क,
इस रस्ते जल्दी पहुँच तेरी अम्मा की मांग लेंगे खेरियत.
राहत अली के कुछ ही दूर पहुंचे थे कदम,
कुछ गुंडों के घिरने से वो हो रहे थे बेदम.
'हिंदुस्तान में रहने का लगता है टैक्स, पाकिस्तानियों पर!'
राहत - मज़हब के भी टुकड़े कर दिए हैं तुम उकाबों ने मिलकर!
'देखता क्या है राणे, इसकी बेटी की छीन चेन और उतार इस पहलवान की जवानी.'
पैसे का मज़हब ही देखते हैं ये पाप के दरिंदे,
अल्लाह और राम को कब का छोड़ चुके हैं,
युधिष्टर के मुकुट के लिए अपनी बीवी को भी बेच चुके हैं.
रहम नहीं करेगा खुदा जब दोजख में जलेंगे कायरता के ये परिंदे!

तिरंगा के आते उन मवालियों में फैला वो आतंक,
वार से पहले ही तिरंगा का शेर साबित हो गया था काफी घातक.
मिनटों में तिरंगा ने उन्हें गीदढ़ बना दिया,
हिफाज़त से राहत अली और उनकी बेटी को उनकी मंजिल तक पहुंचा दिया.
राहत - अगर आप न होते तो मेरी बेटी की इज्ज़त लुट जाती, हम आपके आभारी हैं.
तिरंगा - आभारी तो तिरंगा है आपकी हिम्मत पर,
सिर झुकाता हूँ खुदा तेरे भेजे इस बंदे पर.
मुझे फक्र है की दिल्ली जैसे शहर में आप जैसे हैं नागरिक,
कईयों को तो घड़ी में भी दिखाई देती है बम्बों की टिक - टिक.
एक एहसान मुझ पर भी कर देना,
मेरे लबादे पर अल्लाह की मेहेरबानी करवा देना.

लालच की चक्की में आज हर इंसान पिस रहा था,
देश को अन्नदाता को अन्न का दाना नहीं मिल रहा था.
मजबूरन भारत ने अपना लिया था वो रास्ता,
शैतान रुपी फंदे के बीच उसका ख़तम हो रहा था फासला.
ठहरो! ये अन्याय मत करो,
आज के हाकिमो को डराओ, उनसे तुम मत डरो!

भारत - आग लग कर गोदाम में रखा सारा अनाज जल गया,
खेतों पर अकाल ने अपना डेरा जमा लिया,
तुम ही बतायो मैं क्या करूँ?
कहाँ से अनाज दूँ?
भारत माँ को भूखे रख कर पाप का भागी बनूँ,
या मर कर कंकाली शरीर को काम में लायुं?
तिरंगा - तू है इस देश का अन्नदाता,
तेरे प्रकाश से सबको हरे रंग का मतलब है समझ आता.
जीवन की इस लड़ाई में कभी शस्त्र मत डालो,
उम्मीद की किरण जगा कर भारत माँ के कष्ट हर डालो.
माँ, ने तुम्हे देखा तो रो देगी,
अपने बेटे के बदल चुके चेहरे को ताकती खुद को गुनेहगार मान लेगी.
अंधेरों के बाद रौशनी ने चमकाना ही होता है,
अन्नदाता को अन्न का फल मिलना ही होता है.

पांडवों और कौरवों में से कोई भी बुरा न था,
कुरुक्षेत्र की ज़मीन पर खून का रंग चढ़ गया था.

दोस्तों, हमे अपनी अहमियत समझनी चाहिए!
चाहे एक कूड़े की थेली कचरे में डाल कर वातावरण को और हरा बनायो,
पर कुछ कर अपने देश के काम आयो.
आज हर और लगी है नशे के पिशाचों की मंडली,
थोडा सा धन देकर तुम बदल सकते हो कुछ गरीबों की ज़िन्दगी.
जानवरों को भी अपना साथी मान कर चलो,
भारत के इस विशाल देश में दहेज़ प्रथा को भी रोको.
फ़र्ज़ की तुम मशीन बन के दिखायो,
दिल्ली की आँख परमाणु है,
पर तिरंगे को भी अपनायो!