...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Tuesday, June 25, 2013

देश की कमज़ोर दूर की नज़र




बसे पहले तो उत्तराखंड त्रासदी में निस्वार्थ और निरंतर लगे सेना के जवानों, अर्धसैनिक बलो और जुडी एजेंसियों को नमन और धन्यवाद। अब मुद्दे पर आते है।

देश में आम लोगो की एक ख़ास आदत है। किसी आपदा, या राष्ट्रीय सुर्खियों में आयी घटना, अपराध  से हर चीज़ अतार्किक रूप से जोड़कर देखी जाने लगती है तब तक जब तक कोई अलग, नयी घटना उन सुर्ख़ियों में ना आ जाये। अक्सर ऐसे मामलो मे पता चलता है की जनता के एक बड़े हिस्से की दूर की नज़र कमज़ोर है। हाँ ये दुर्भाग्यपूर्ण है की एक त्रासदी घटी पर उसके कारको को हटाने पर काम की बजाये दोषारोपण, हर बात मे उस दुखद घटना को घुसा देना कितना सही है?

जैसे एक कॉमिक फैन ने बाइस हज़ार की कॉमिक्स खरीदी तो उसे ऑनलाइन ये नसीहतें/ताने दिये गये की उत्तराखंड त्रासदी मे दान करना चाहिये था। क्या जो कलाकार अपने घरों से इतनी दूर आकर मेहनत कर रहे है उन्हें और उनके परिवारों को जीने के लिए पैसो की ज़रुरत नहीं? उस त्रासदी के अलावा कहीं कश्मीर मे जवानों के काफिले पर आतंकी हमले में 8 जवान मारे गए और कुछ घायल हुए ...इसी तरह और छोटी-बड़ी दुखद घटनायें हुयी .....क्या उन घटनाओ के पीड़ितों को मदद की ज़रुरत नहीं? बिल्कुल है पर आपको तो महीनो एक घटना के तले जो काटने की आदत है। 

देश एक मशीन की तरह है जिसकी इकाइयाँ अपने क्षेत्र के काम करने में माहिर है, सब रुक कर एक दिशा मे जायेंगे तो देश रुक जाएगा जिस से और अधिक पीड़ित होंगे। वैसे कहने वाले कह बड़ी आसानी से देते है पर अगर देखा जाए तो उस दिशा में सबसे कम योगदान ऐसे ही लोगो का होता है। प्रकृति पर किसी का बस नहीं चलता पर खुद को व्यतिगत रूप से बदलकर अपने आस-पास के समाज को बदलने की कोशिश कीजिये, सही लोक उम्मीदवार चुनिए। इस से ज्यादा करना चाहते है तो पहले उस स्तर तक पहुँचिये जहाँ से लोगो की मदद कर पायें आप। नीचे से कोसना या बंदर घुड़की देना कुछ न करने के समान है।

- Mohit

Friday, June 7, 2013

Baali (Aryan Creations) Promo


Art - Harish A. Thakur


प्रकृति भी अपने नियमो में खुद को बाँधे रखती है। वो अपना प्रारूप बदलती है पर मानव की तरह अपने स्वार्थ साधने के लिये नहीं जिसको लाभ दिखाई देने पर नैतिकता दिखनी बंद हो जाती है, जो अपने मित्र, संबंधी को स्वार्थ के तराज़ू में तोलता है और उनसे लाभ न दिखने पर निकटता समाप्त कर देता है अथवा निकटता का नाटक करता है। जहाँ तक ऐसा मानव देख पाता है या सोचता है स्वार्थ प्रेरित कर्म उसको अपने जीवन के लिए लाभकारी प्रतीत होते है पर यही भ्रमित होकर पथभ्रष्ट होने का प्राथमिक चरण है।

धर्मपरायण जनता ईश्वर से त्राहीमाम करती कहती है की धर्म, सत्य की राह इतनी विकट क्यों है? इसका उत्तर सीधा सा है ईश्वर सत्य की राह पर चलने वाले अनेको में कुछ व्यक्तियों की परीक्षा लेते है की वो इतने सक्षम है जो कलियुग मे हर और फैले अधर्म से युद्ध कर उसे हरा पायें ....अगर कुछ परीक्षाओ बाद भी व्यक्ति सफल नहीं होता तो ईश्वर उसको या तो मूक जनता का सदस्य बना देते है जो चुप सब देखती है या वो समय के साथ अपना चरित्र खोकर अधर्म का अंग बन जाता है।

जब बाली अधर्म के साथ था तो वो शक्तिशाली था और अंतिम समय तक उसको अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा। पर इस युग में जब वो धर्म और सत्य के साथ है तो भगवान ने उसकी और उसके चरित्र की परीक्षा के लिये उसको कई सीमाओ में बाँध दिया ....बाली प्रभु की
परीक्षा देगा ....सीमान्त तक संघर्ष करेगा।


- Mohit