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Tuesday, June 28, 2016

ज़रूरत (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन


तकनीकी गड़बड़ी से एक यात्री विमान ज़मीन से हज़ारों मीटर ऊपर भीषण डीकम्प्रेशन से बिखर कर बंगाल की खाड़ी में गिर गया था। अचानक दबाव के लोप हुआ धमाका इतना भीषण था कि किसी यात्री के बचने की संभावना नहीं थी। 279 यात्रियों और विमान दल में केवल 112 व्यक्तियों की क्षत-विक्षत लाशें मलबे से चिपकी या तैरती मिली, बाकी लोगो को सागर लील गया। बैंक लिपिक रूबी के पिता शॉन इस फ्लाइट में थे। पूरे दिन के सफर के बाद जांच-बचाव केंद्र पर पहुंच कर रूबी को पता चला की एक को छोड़कर बाकी सभी शवो की उनके परिजनों द्वारा पहचान हो चुकी है। हाल ही में कैंसर पीड़ित अपनी माँ को खो चुकी  रूबी ने बुझे मन से आखरी शव को देखा तो चेहरा और शरीर पहचान में न आ सकने वाली हालत में थे, पर शव के पैर पर चोट का लंबा निशान रूबी के लिए अपने मृत पिता को पहचानने के लिए काफी था। सिसकती हुई रूबी औपचारिकताओं के लिए आगे बढ़ी तो उसे एक आवाज़ ने रोका। 

"तुम्हे कोई गलतफहमी हो गई है बेटी! यह मेरे पति हैं।"

रूबी ने उस वृद्धा को दया से देखा और कुछ देर समझाने की कोशिश की, पर वह औरत अपनी बात पर अड़ी रही। थोड़े समय बाद रूबी के सब्र का बांध टूट गया और वह उस बूढ़ी महिला पर चिल्लाने लगी। आस-पास अन्य यात्रियों के कुछ परिजन और जांच अधिकारी आ गए। भीड़ मे कोई बोला - "अरे...ये औरत पागल हो गई है। पहले 2 लाशों को अपना पति बता रही थी फिर वहां से भगाया इसे।" 

अब रूबी ने उस औरत पर ध्यान दिया, उसका हुलिया व्यवस्थित था। वह शांत थी और उसके व्यवहार में पागलपन जैसा कुछ नहीं दिख रहा था। 

एक अधिकारी ने मामला सुलझाना चाहा - "देखिए अगर शव पहचान में विवाद है तो डीएनए जांच के लिए भेजे जा सकते हैं।" 

रूबी - "नहीं ऑफिसर! डीएनए टेस्ट मत करवाइये, मैं अपना क्लैम वापस लेती हूँ...यह मेरे पिता नहीं हैं।"

सबकी अविश्वास भरी नज़रों और मुँह पर लेकिन के जवाब में रूबी दबी ज़ुबान में बोली "...शायद इस समय मुझे मेरे पिता से ज़्यादा इन्हे इनके पति की ज़रूरत है।"

एक बार शव को प्यार से छूकर रूबी ने नम आँखों से ही पिता का अंतिम संस्कार कर विदा ली। 

समाप्त!

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Sunday, June 26, 2016

Featured | DK Boss/Se7enth Sense (the artworks) | Artist Dheeraj Kumar

Creative Artist Dheeraj Dkboss Kumar is an Indian Graphic Designer, Colorist and Illustrator. 

Qualifications: Bachelor of Fine Arts (BFA) - 2004-2008 , Allrounder of Applied Art - 2008, AD3D+ (complete animation course) - 2008-2010. 

Awards and Accolades: 24FPS Animation Awards for Best Story and Best Movie (Winner), Indian Comics Fandom Awards 2013 - Colorist (Silver), Indian Comics Fandom Awards 2014 - Cartoonist (Gold), Indian Comics Fandom Hall of Fame 2014. 

Location - Lucknow, India. FB page - DK Boss/Se7enth Sense (the artworks)
Here are some of his works....




Webcomic - Jhoomritallaiyaa

Sunday, June 19, 2016

अकूत संपत्ति (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन


2 पुराने दोस्त राजीव मेहरा और मयंक शर्मा 18-20 सालों बाद मिले थे। भाग्य के फेर से अपनी ज़िंदगियों में काफी व्यस्त और एक-दूसरे से हज़ारों किलोमीटर दूर की शुरू के कुछ सालों बाद दोनों जैसे भूल ही गए अपने जिगरी यार के हाल-चाल लेना। इतने समय में कई चीज़ें बदल गयीं थी। अब प्रौढ़ अवस्था में वो किशोरों वाली फुर्ती नहीं थी और न ही हर बात पर ठहाके-ठिठोली। हाँ, पर दोनों की आँखों में वही पहले वाली चमक थी। बातें करते-करते दोनों छत पर आ गए, किनारे चेस बोर्ड और प्यादे पड़े थे। 

मयंक - "यार पहले की तरह उछला-कूदा नहीं जा सकता पर चेस तो खेल ही सकते हैं। आ बैठ चारपाई पे!"

दोनों चेस की बाज़ी के साथ जीवन की बातें करने लगे। 

राजीव - "भाई बड़ा मलाल हो रहा है। एक प्रॉपर्टी मुझे 4 साल पहले 37 लाख की मिल रही थी, मैंने तब ली नहीं किसी और चक्कर मे पड़ा था। उसके आस-पास कुछ सोसाइटी अप्रूव हो गईं, हाई-वे बन गया अब कीमत 8 करोड़ है उसकी। उस समय इधर ध्यान दिया होता, नादानी न की होती तो आज तेरा भाई आराम से रिटायर होता।"

मयंक - "बुरा हुआ!...तेरी बात से याद आया मैंने भी करोड़ो-अरबों की संपत्ति गंवा दी अपने हट और नादानी की वजह से।"

राजीव - "मज़ाक मत कर यार! मैं तुझे जानता हूँ... तू ठहरा एक साधु आदमी, ये प्रॉपर्टी वगैहरह में तू कभी नहीं पड़ने वाला।"

मयंक - "सोनिया देशपाल का नाम सुना है?"

राजीव - "हाँ, वो बैडमिंटन मे वर्ल्ड नंबर वन ना? अभी ओलिम्पिक मे कोई मेडल भी जीता है बच्ची ने..."

मयंक - "हाँ, वही! अंदर 14 नेशनल मीट में मेरी 12 साल की बच्ची रूपल ने अपनी सीनियर सोनिया को फाइनल मे हराया था। पढ़ाई मे औसत थी वो और क्लास 7 बड़ी मुश्किल से पास करवाई थी हमने उसे। टूर्नामेंट के बाद उसके क्लास 8 के पेपर थे, उसका ध्यान न डिगे इसलिए नेशनल मीट के बाद मैंने और तेरी भाभी ने इसे इतना मारा और सुनाया की उसने बैडमिंटन छोड़ दिया और यही हम चाहते थे।"

राजीव - "ओह! भाई ये तो बड़ी गलती हो गई! आज शायद रूपल भी सोनिया जैसे मेडल ला रही होती, बाहर के टूर्नामेंट जीत रही होती...पर तूने तो सिर्फ छोटी निवेदिता से मिलवाया। रूपल कहाँ है?"

मयंक - "उसके कुछ दिन बाद तनाव में रूपल ने आत्महत्या कर ली...अरबों-खरबों की संपत्ति, अपनी परी को मैंने अपने पागलपन में गंवा दिया।"

समाप्त!

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Sunday, June 12, 2016

इज़्ज़त का अचार (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन

होपी नामक क़स्बा नक्काशी के काम और पुराने मंदिरों की वजह से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र था। यहाँ आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या काफी थी। संपन्न परिवार का दिनेश वहां अकेले ट्रेवल एजेंसी, टूर गाइड्स, होटल आदि काम संभालता था। उसे लगता था उसके पुरखों को कमाना नहीं आता था और जितना वे कमा सकते थे उतना कमाया नहीं। वह अपने ड्राइवर्स, होटल मैनेजर, गाइड्स आदि के साथ मिलकर हर सेवा के विदेशी पर्यटकों से ज़्यादा पैसे वसूलता, घटिया सामान खरीदवाता और मौका मिलने पर अपने ही पॉकेटमार, चोर लड़के-लड़कियों से पर्यटकों के पैसे और कीमती सामान उठवाता। 

एक दिन यूँ ही काम का जायज़ा ले रहे दिनेश के पिता ने उसे टोका तो उसका जवाब था - "पिता जी आप बेफिक्र रहो! पुलिस अपनी जेब में है, बस टूरिस्ट को दिखाने का नाटक करते हैं। न इस जगह कोई दूसरा कॉम्पिटिशन है अपना।"

बिजनस सँभालने के डेढ़ साल के अंदर ही पहले से काफी अधिक मुनाफा हुआ तो दिनेश ने खाना खाते हुए अपने बुजुर्गो को ताना मारा - "बाउ जी ऐसे कमाया जाता है रुपया।"

इन डेढ़ वर्षों के दौरान इंटरनेट फ़ोरम्स, सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ रिपोर्ट्स में होपी क़स्बा पर्यटकों से चोरी, धोखाधड़ी के मामलो में कुख्यात हो गया था। कभी हज़ारो विदेशी पर्यटकों के आकर्षण पर अब गिने-चुने विदेशी आने लगे। दिनेश के काम एक-एक कर ठप होने लगे और ज़मीन बेचने की नौबत आ गयी। बाबा से रहा न गया - "बेटा, ज़मीन के अलावा घर भी बेचना पड़े कोई बात नहीं.... इन्हे बेच कर इस परिवार, जगह और देश की खोई इज़्ज़त वापस मिले तो लेते आना।"

समाप्त!
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