लघु कथा - "दहेज़ डील" (from 'Bonsai Kathayen' collection)
कसबे का लड़का लग गया मोबाईल टावर लगाने और उसकी मरम्मत करने वाली कंपनी मे। तनख्वाह भी अच्छी और घर से भी ठीक-ठाक। कसबे कि जवान लडकियाँ (जो उसकी जाति की थी) उनके माँ-बाप के लिए वो लड़का सोने की खान था। ऐसे ही एक आशावान माँ-बाप अपना भाग्य आजमाने लड़के के घर पहुँचे।
कसबे भर मे लगातार मिल रहे मुफ्त के सम्मान से लड़के के परिवार के भाव बढ़ गए थे।
लड़के की माँ - "हम्म ...लड़की तो सुन्दर है पर दहेज़ का क्या रहेगा?"
लड़की के पिता - " ....जी! बारहवी के बाद कम्पूटर कोरस भी किया है, ढाई हज़ार कमा रही है स्कूल मे। सारे काम कर लेती है। वो शादी अच्छे से करेंगे ...और .."
लड़के के पिता - " ....हाँ जी! पर दहेज़ का भी तो बताइए ..."
लड़की की माँ - "जी ...देने को तो ज्यादा कुछ नहीं है. ..पर .."
लड़के की माँ -" फिर तो जी मुश्किल है ..."
लड़की के पिता - "वकील साहब स्टेशन के पास ज़मीन है थोड़ी और थोड़े घर के पास कुछ खेत है।"
लड़के के माता-पिता ज़मीन सुनकर खुश हो गए।
"तो आप ज़मीन दोगे बेटी के साथ ...."
लड़की के पिता - "नहीं जी, आप बेटे जी से कह कर 2-3 टावर लगवा दो मोबाइल वाले हमारी ज़मीन और खेतो मे। उनके जो हर महीने 20-22 हज़ार आयेंगे वो आप लोगो के ..."
- मोहित शर्मा (ज़हन) #mohitness #mohit_trendster
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