Artwork - Kinannti
रजनी का एक राष्ट्रीय चिकित्सीय प्रतियोगी परीक्षा का यह अंतिम अवसर था। रजनी की मेहनत घर में सबने देखी थी और डॉक्टर बनने का सपना भी लगनशील रजनी और उसके परिवार ने साथ देखा था। यह लगन ऐसी संक्रामक थी कि जीवन में कोई ध्येय ना लेकर चलने वाली, स्वभाव में विपरीत रजनी की जुड़वाँ बहन नव्या, सिर्फ उसके सहारे मेडिकल फील्ड लिए बैठी थी। यह रजनी की संगत का ही असर था जो पढाई में कमज़ोर नव्या ने अच्छे अंको से दसवी, बारहवीं पास की थी, यह नव्या भी इस राष्ट्रीय परीक्षा में अंतिम अवसर था। इंटरनेट पर परिणाम घोषित हुआ और एक बार फिर से रजनी बहुत कम अंतर से असफल हुयी। रजनी का जैसे पूरा संसार ही अंधकारमय हो गया। जब तक कोई कुछ समझाता, समझता उस से पहले ही रजनी ने आत्महत्या कर ली।
नव्या को पहले ही पता था कि वह सफल नहीं हो पाएगी और परिणाम ने उसके अंदेशे पर मोहर लगा दी पर खुद से ज़्यादा दुख नव्या को अपनी मेहनती बहन रजनी के लिए था। अब उसे लगा कि काश उसे थोड़ा समय मिल पाता अपनी बहन को समझाने का। माता-पिता अविश्वास से एकटक कहीं देखकर अपनी कल्पनाओ को सच्चाई पर हावी करने की हारी हुयी कोशिश कर रहे थे। कुछ समय बाद अपने परिवार के लिए नव्या ने स्वयं को संभाला और क्लीनिकल रिसर्च में 8 महीनो का कोर्स कर उसे अच्छे वेतन पर एक विदेशी कंपनी में नौकरी मिली। नव्या को पता था कि अगर उसकी जगह उसकी बहन होती तो अपने ज्ञान और मेहनत के दम पर उस से अच्छे स्थान पर होती, उस स्थान पर जो उसे उस प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद भी ना मिलता। कुछ समस्याएँ जो कभी जीवन को चारो और से घेरे ग्रहण लगाये सी प्रतीत होती है, जिनके कारण सुखद भविष्य की कल्पना असंभव लगती है, चंद महीनो बाद ऐसी समस्या का अस्तित्व तक नहीं रहता। थोड़ा और समय बीत जाने के बाद तो दिमाग पर ज़ोर डालना पड़ता है कि ऐसी कोई दिक्कत थी भी जीवन में। नव्या अक्सर सपने में रजनी को समझाते हुए नम आँखें लिए जाग जाती है - "बहन! बस ये थोड़े लम्हें काट ले, जो इतना सहा...वो दर्द सहकर बस कुछ पल और गुज़ार ले....सवेरा होने को है..."
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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