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Sunday, February 14, 2021

जैसे वे कभी थे ही नहीं...(लघुकथा)

जॉली जीत और बॉबी जीत, सफल फिल्मकार भाइयों की जोड़ी थी। दोनों कुल 57 फ़िल्में बना चुके थे। जॉली की मृत्यु हुई तो बॉबी का रचनात्मक सफर भी खत्म हो गया। अब सिर्फ़ किसी अवार्ड समारोह, टीवी शो में मेहमान के तौर पर बॉबी साल में 2-4 बार लोगों के सामने आता था।

उनके पुराने नौकर ने ड्राइवर से कहा - "जॉली सर के जाने के बाद बॉबी सर के इंटरव्यू बदल गए हैं।"

ड्राइवर - "मैंने इतना ध्यान नहीं दिया...शायद गम में रहते होंगे, बेचारे।"

नौकर - "नहीं, जॉली सर के ज़िंदा रहते हुए, इन दोनों की फ़िल्मों पर बात करते समय बॉबी सर बारीकी से बताते थे कि जॉली सर ने किसी फ़िल्म में क्या-क्या और कितना अच्छा काम किया था। अब उनके इंटरव्यू में वह बारीकी सिर्फ़ अपने लिए रह गई है। जैसे..."

ड्राइवर - "जैसे?"

नौकर किसी के पास न होने पर भी दबी आवाज़ में बोला - "...जैसे जॉली सर कभी थे ही नहीं।"

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#ज़हन

Image by Daniel Frank

2 comments:

  1. सुन्दर.....अक्सर यही होता है...

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    1. हाँ, बस कुछ लोगों में संसार का लोभ नहीं या कम आता है...बाकी तो यही कहानी दोहराई जाती है।

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