Art - Harish A. Thakur
प्रकृति भी अपने नियमो में खुद को बाँधे रखती है। वो अपना प्रारूप बदलती है पर मानव की तरह अपने स्वार्थ साधने के लिये नहीं जिसको लाभ दिखाई देने पर नैतिकता दिखनी बंद हो जाती है, जो अपने मित्र, संबंधी को स्वार्थ के तराज़ू में तोलता है और उनसे लाभ न दिखने पर निकटता समाप्त कर देता है अथवा निकटता का नाटक करता है। जहाँ तक ऐसा मानव देख पाता है या सोचता है स्वार्थ प्रेरित कर्म उसको अपने जीवन के लिए लाभकारी प्रतीत होते है पर यही भ्रमित होकर पथभ्रष्ट होने का प्राथमिक चरण है।
धर्मपरायण जनता ईश्वर से त्राहीमाम करती कहती है की धर्म, सत्य की राह इतनी विकट क्यों है? इसका उत्तर सीधा सा है ईश्वर सत्य की राह पर चलने वाले अनेको में कुछ व्यक्तियों की परीक्षा लेते है की वो इतने सक्षम है जो कलियुग मे हर और फैले अधर्म से युद्ध कर उसे हरा पायें ....अगर कुछ परीक्षाओ बाद भी व्यक्ति सफल नहीं होता तो ईश्वर उसको या तो मूक जनता का सदस्य बना देते है जो चुप सब देखती है या वो समय के साथ अपना चरित्र खोकर अधर्म का अंग बन जाता है।
जब बाली अधर्म के साथ था तो वो शक्तिशाली था और अंतिम समय तक उसको अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा। पर इस युग में जब वो धर्म और सत्य के साथ है तो भगवान ने उसकी और उसके चरित्र की परीक्षा के लिये उसको कई सीमाओ में बाँध दिया ....बाली प्रभु की हर परीक्षा देगा ....सीमान्त तक संघर्ष करेगा।
- Mohit
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