बीते दिनों जो प्रकरण हुए तब मैं सफर में था और उस समय काफी कुछ कहने का मन था पर मोबाइल से पोस्ट करना मुझे जमता नहीं, अगर कोई बात मिसइंटरप्रेट होती तो मैं फॉलो अप नहीं कर पाता, अब उतना रोष नहीं है मुझमे। अब थोड़ी शान्ति हुई है तो दोबारा आग नहीं भड्काउँगा पर कुछ बातें कभी आगे लिखने के लिए टाल दी तो हमेशा के लिए रह जायेंगी। भाषा और लहज़ा सही होना चाहिए था जो नहीं हुआ पर माफ़ी माँग ली गयी, बहुत अच्छा किया। आशा है आगे ध्यान रखेंगे।
दोस्तों, बात प्रकरण से कैसे जुडी है ये आप लेख पूरा पढ़ने के बात जानेंगे। बड़ा इंसान कैसे बनते है मुझे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं पर अच्छा इंसान बनने में शायद थोड़ी मदद कर सकता वो भी सिर्फ एक सलाह से।
अगर कोई गैर-कानूनी, पागलपन गतिविधियों में नहीं लिप्त है तो तुलनात्मक बातों से ऊपर उठकर व्यक्तिगत गुणों को और व्यक्तियों को सराहना सीखें। ज़िन्दगी एक रेस ज़रूर है पर कई वजहों से ना तो सभी एक पॉइंट से रेस शुरू करते है और ना ही सबकी रफ़्तार और रास्ता एक जैसा होता है। किसी की रेस ही पॉइंट के काफी पीछे से शुरू होती है, किसी की राह में बीमारी-घर आदि का घर्षण बढ़ जाता है, कोई खुले विचारो वाले या संपन्न घर में होने की वजह से रेस में प्राकर्तिक बढ़त पा लेता है। तो आगे कभी भी यह कहने से पहले सोचियेगा की फलाना तो पहाड़ की चोटी चढ़ गया तुम अभी तक छोटे से पठार पर हो, शायद वो फलाना इस पठार वाले की जगह होता तो इतना भी ना कर पाता और इतना भी एक उपलब्धि होती, या ये उधर होता तो एवेरेस्ट चढ़ जाता। मेहनत और प्रतिभा को हमेशा सलाम पर तुलना क्यों, जब रास्ता एक सा नहीं? क्या किसी सी.ए. जो लेखक बनना चाहता था पर घर की किसी आपात स्थिति में अलग कैरियर चुना के 10 ऑडिट करना 2 कॉमिक्स लिखने के बराबर कहा जा सकता है? बिलकुल नहीं, क्योकि दोनों अलग-अलग बात है। नयी पीढ़ी है, तो पहले से कहीं तो सुधार दिखे, चलिये ये तुलना के पैमाने हटाने से शुरुआत करें जहाँ एक के कम्पेरिजन में दूसरे की औकात नापी जाती है। क्या हम दोनों को उनके व्यक्तिगत गुणों पर सराह नहीं सकते? फिर आप कहते है की "बॉस या मंत्री चापलूसों की ही क्यों सुनता है? ये सिस्टम में बड़ा खोट है आदि!" कहीं जाने-अनजाने आप खुद तो दोषी नहीं? जैसे ये तर्क की जब फलाना ने खुद कुछ नहीं किया तो उसको आलोचना का हक़ नहीं, या पहले इतना करो तब आलोचना करो। इस लॉजिक से तो फिर सराहना करने का भी हक़ नहीं, कुछ कहने का हक़ नहीं? क्योकि जब तक उस स्पेसिफिक क्षेत्र में उस मुकाम पर ना आ जाये कोई, तो उसको किस स्थिति में आपने तारीफ करने लायक जज कर दिया? सराहना करने का भी हक़ नहीं! अगर आप यह कहते है की हमे कॉमिक्स पढ़कर आनंद आया इसलिए तारीफ़ तो उस फलाना को शायद मज़ा नहीं आया और उसने आलोचना कर दी। यहाँ गौर करने वाली बात है फलाना ने 256 जगह अलग-अलग कॉमिक्स की तारीफ़ की इसी स्टाइल में तब अलग से शाबाशी नहीं मिली, अब मुझे जितना पता है शायद 256, एक से बड़ी संख्या होती है। मेरी बात यह अभिप्राय नहीं की सही-गलत को एक तराज़ू में तोले पर जिस intensity से दोनों पार्टीज़ ने एक दूसरे को कोसा वो सही नहीं। वो भी तब जब दोनों एक ही तरफ है कुछ मतभेदों को अगर नज़रअंदाज़ कर दें तो।
यहाँ मुझे टो.. मेरे मतलब है एडमिन मुकेश जी भूमिका गलत लगी जिन्होंने निरंतर आग में घी डालने का काम किया आशा है आगे वो अपने कलेक्शन, लेखों और मोशन ट्रेलर्स की तरह सकारात्मक और अच्छी-अच्छी बातें करेंगे।
P.S. Kisi wajah se apni purani id se post nahi kar paa raha hun par wo abhi bhi chaalu hai.
- Mohit Trendster
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