डॉक्टर्स द्वारा हफ्ते-दो हफ्ते का समय शेष पता चलने पर विधिचंद अपने जीवन की लंबी शो-रील के साथ गुपचुप बागीचे में बैठे रहते। देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना संघर्ष, स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के लिए सपने, उम्मीदें...फिर समझौते करते अब तक का सफर। 2 दिनों बाद भारी बरसात होने लगी तो उन्हें याद आया कि जीवन की शो-रील में बचपन वाला हिस्सा चलाना रह गया दिमाग में। जाने कितनी बारिशों में गाँव की मित्रमण्डली के साथ की गयी धमाचौकड़ी के दृश्य आज भी उनके ज़हन में ताज़ा थे। नथिंग टू लूज़ सोच लिए वो बचपन के चलचित्र को जीने एक बार फिर से बरसात में भीगने बाहर निकल आये।
कुछ क्षण बाद ही आँखों और शरीर की जलन यादों पर हावी हुयी और पीछे से बेटे की आवाज़ आई - "पिता जी! सीजन की पहली बारिश है। सल्फर-वल्फर होगा पानी में, एसिड रेन है, अंदर आ जाइए। देखो जलन से आँखों में पानी आ रहा है आपकी।"
...पर विधिचंद की आँखों में पानी किसी और वजह से था।
समाप्त!
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