...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Tuesday, December 12, 2017

कला में संतुलन की कला :) #Hindi_Article


“लाइफ इज़ नॉट फेयर”, ये प्रचलित कहावत है। मैंने पहले कई बार कलाकारों की दयनीय स्थिति पर बात रखी है। आज एक अलग सिरे से विचार रख रहा हूँ।  कलाकार अगर प्रख्यात हो जाये तो जीवन सही है और अगर ना हो तो लाइफ इज़ नॉट फेयर? नहीं! मैंने अलग क्षेत्रों के कई तरह के कलाकारों में एक बात देखी, जिसे शायद वो समझा ना पाएं। प्रख्यात होना बहुत से कलाकारों के लिए हानिकारक होता है। कई लोग लगातार अपनी कला में कुछ ना कुछ करते, उसके बारे में सोचते रहना चाहते हैं। प्रख्यात होने के बाद व्यक्ति को अवसर मिलते हैं, जीवन-यापन सुगम हो जाता है, पर उस स्तर पर आने के बाद व्यक्ति क्या खो देता है…

जब आपके हर काम पर जनता की नज़र हो और हर कला के पीछे किसी और के लाखों या करोड़ों रुपये लगे हों तो अपने आप दबाव बन जाता है। वो स्वच्छंदता जो इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट के पास होती है, उसका काफी सीमा तक बलिदान देना पड़ता है। उदाहरण के लिए बड़े स्तर पर एक म्यूजिक एल्बम या किताब प्रकाशित होने पर उसके प्रचार-प्रसार, लोगों को उस किताब/संगीत के अवयव बार-बार समझाने में काफी समय व्यर्थ होता है। कई वर्षों तक ऐसा होने पर कलाकार अपने सक्रीय जीवन का (जब उसका मस्तिष्क और शरीर अच्छी हालत में रचनात्मकता का साथ देते हैं) बहुत बड़ा हिस्सा और शक्ति प्रमोशन, फॉलो-अप आदि गतिविधियों में बिता देता है।

कलाकार की रचनात्मक स्वतंत्रता केवल उसके लिए ही नहीं समाज के लिए महत्वपूर्ण है। सफल होने के बाद जुड़े लेबल, पैसे और औद्योगिक प्रतिबद्धता के सीमित दायरे में वह पूरी तरह अपनी मर्ज़ी का मालिक नहीं हो पाता। चाहे बाहर से वह अपने निर्णय लेता दिखे पर उसके अवचेतन मन में आ चुकी बातें अक्सर उसे रोक लेती हैं। साथ ही प्रयोगों के आभाव में एक कलाकार के रूप में उसका विकास धीमा पड़ जाता है। हालाँकि, छोटी संख्या में कलाकार ऐसे भी हैं जो इन दो बातों के बीच संतुलन बनाने में सफल हो जाते हैं। ये संतुलन पूर्णतः व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। ऐसा तभी संभव है जब कला को अपनी प्राथमिकता रखा जाए, चाहे व्यक्ति किसी भी स्तर पर पहुँच चुका हो।

इस नये कोण से बातों को देखने का आशय संतुलन बनाने का महत्त्व बताना था। याद रखें कला चलाये रखने के लिए कुछ हद तक सफलता भी ज़रूरी है। पैसों के अभाव, मजबूरियों में कला ही छोड़नी पड़े से बेहतर चाहे खालिस कमर्शियल ही सही कला का जारी रहना है। 

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Artwork - Richard F.
#ज़हन

Thursday, December 7, 2017

ख़बरों की ऊपरी सतह


एक नामी कलाकार हैं जिनका नाम नहीं लूँगा, जिनका नाम उनके काम से ना होकर उनकी मार्केटिंग और ब्रांडिंग से हुआ है। थोड़े वर्ष पूर्व अपने क्षेत्र में उन्होंने कुछ व्यंगात्मक काम किये जो देश की व्यवस्था, सरकार पर कटाक्ष थे। ये काम काफी जेनेरिक नेचर के थे यानी आज़ादी के बाद से हर रोज़ देश भर में ऐसे कई व्यंग बनते हैं, चलते हैं, प्रकाशित होते हैं...पर पता नहीं कैसे उनकी 'कला' पर किसी की नज़र पड़ी और उन्हें गिरफ्तार कर कुछ दिनों के लिए जेल भेज दिया गया। छोटी बात पर ना किसी का ध्यान जाता है और ना आसानी से गिरफ्तारी होती है। हाँ, अगर किसी को स्टंट करके करोड़ों की भीड़ (जिनमें हज़ारों ऐसे भी हैं जो वैसी कला बल्कि बेहतर कला दशकों से कर रहें है) से बिना 20-25 वर्ष की मेहनत एक झटके में ऊपर आना है...तो अलग बात है। गिरफ्तारी हुई और उसके फोटो फैले बाकायदा ऐसे जैसे फोटोशूट चल रहा हो। छोटी बात की कुछ दिनों की सजा काट साहब बाहर आये और तब तक ये ख़बर अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया पकड़ चुका था। वहाँ के लोगों ने बिना दिमाग पर ज़ोर डाले इस बात को 'तीसरी दुनिया' के देशों की बर्बरता की श्रेणी में रख दिया और ये कलाकार स्टार बन गया। टीवी, रेडियो पर आने लगा। अच्छी बात है, अगर प्रतिभा नहीं है तो स्टंट के दम पर कुछ समय के लिए ही सुर्ख़ियों में रहा जा सकता है। जो अच्छी बात नहीं हैं वो इसके बाद की है। बात ठंडी होने के बाद इन्होने समाज सुधारक का तमगा ले लिया और उसके आधार पर इनसे जुडी संस्थाओं को फंड मिलने लगे, ऐसी जगहों, आयोजनों पर ये "वक्ता" बन जाने लगे जहाँ विशेषज्ञ भी सोच में पड़ जाये। 

पहली आपत्ति - आम विचारों को स्टंट की आड़ में छुपाकर दार्शनिक बनना। 
दूसरी आपत्ति - दशमलव हुनर लेकर 95-100 प्रतिशत स्तर पर मौजूद कलाकारों की जगह वाली इज़्जत पाना। 
तीसरी आपत्ति - एक स्टंट के बल पर जीवन भर मुफ्त की खाना। 
चौथी आपत्ति - बाद में पैसे के दम पर 'ऑन रिकॉर्ड' काम के मामले में जाने कितने पहाड़ उखाड़ने वाले की तरह पहचाने जाना। 
पांचवी आपत्ति - इस सफलता के बाद बहुत से लोग इस तरह के शॉर्टकट लेने को प्रेरित होंगे।

किसी विषय पर मन बनाने से पहले ख़बरों की ऊपरी सतह को हटाकर ज़रूर देखें।
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