...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Saturday, November 28, 2015

Micro Fiction Experiment (Kidnap) - Mohit Trendster


Theme: अपहरण (Kidnapping) - Mohit Trendster

*) - बाहरी लोग सही कहते थे जंगली लोग जादू-टोना करते है। दो महीनों तक घने जंगल की गुमनामी में बंधक बना पर्यटकों का दल आज उन्हें बचाने आये कमांडोज़ और उनके अपरहरणकर्ता कबीले वालों के बीच में ढाल बनकर खड़ा था। 

*) - बब्बन पाशा चिंतित था। बड़े गुटों के कुछ आत्मघाती, अपहरण मिशन फेल हुए तो बिल उसके गिरोह के नाम फाड़ दिया गया। अब भारी सुरक्षा से उसने एक विदेशी राजनयिक को अगवा किया तो कोई मान के नहीं दे रहा उल्टा उसके आतंकी संगठन से मिलते जुलते नाम वाले संगठन को श्रेय दिया जा है खबरों में। 

*) - क्रोध में बिलबिलाता पर कुछ करने में असमर्थ मोज़ेस ठगा सा महसूस कर रहा था क्योंकि एक तो वह नास्तिक था और तो राजनीती वगैहरह में नहीं पड़ता था। बेचारा बस एक टेनिस मैच देखने आया था, वो भी जीवन में पहली बार। अब किन्ही धर्मों की लड़ाई में उसको क्यों किडनैप कर लिया गया। 

*) - विभोर ने बंदूकें फिल्मों में ही देखी थी। उसका मन थर-थर काँप रहा था जबकि बाहर से उसका स्थिर-शांत तन तरह-तरह की भाव भंगिमाओं से अपनी 4 साल की बच्ची का समस्या से ध्यान बँटाने और सब ठीक हो जाने का दिलासा देने में लगा था। 

*) - किटकिटाते दांतों से खुद को गरियाने की कोशिश करती गरिमा सोच रही थी कि जहाँ भाग कर आयी उस वीराने में इस दन्त-कुड़कुड़िया सर्दी से बेहतर तो वो गुंडे ही रख रहे थे। 

*) - बंगले के बाहर जमा किडनैपर गुट का मकसद हत्या नहीं था, पर दंगों से उबर रहे शहर में अफवाहें ज़ोरो पर थी। दुछत्ती में छिपे परिवार के अन्य सदस्यों की जान बचाने के लिए माँ ने रो रहे नवजात का गला घोंट दिया। 

*) - अब उसे पता चला कि गिरोह के सरगना ने बंधक से आँखें मिलाने को क्यों मना किया था। जाने क्यों अपने किडनैपर को भी उम्मीदों से देख रहीं थी वो आँखें...कसम से अगर 2 क्षण उन आँखों में और देख लेता तो साइड बदल कर उन्ही का हो जाता। 

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Monday, November 23, 2015

तेज़ाबी बरसात (लघुकथा) - मोहित ट्रेंडी बाबा


डॉक्टर्स द्वारा हफ्ते-दो हफ्ते का समय शेष पता चलने पर विधिचंद अपने जीवन की लंबी शो-रील के साथ गुपचुप बागीचे में बैठे रहते। देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना संघर्ष, स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के लिए सपने, उम्मीदें...फिर समझौते करते अब तक का सफर। 2 दिनों बाद भारी बरसात होने लगी तो उन्हें याद आया कि जीवन की शो-रील में बचपन वाला हिस्सा चलाना रह गया दिमाग में। जाने कितनी बारिशों में गाँव की मित्रमण्डली के साथ की गयी धमाचौकड़ी के दृश्य आज भी उनके ज़हन में ताज़ा थे। नथिंग टू लूज़ सोच लिए वो बचपन के चलचित्र को जीने एक बार फिर से बरसात में भीगने बाहर निकल आये। 

कुछ क्षण बाद ही आँखों और शरीर की जलन यादों पर हावी हुयी और पीछे से बेटे की आवाज़ आई - "पिता जी! सीजन की पहली बारिश है। सल्फर-वल्फर होगा पानी में, एसिड रेन है, अंदर आ जाइए। देखो जलन से आँखों में पानी आ रहा है आपकी।"

 ...पर विधिचंद की आँखों में पानी किसी और वजह से था। 

समाप्त!

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Sunday, November 22, 2015

भ्रम की परत - मोहित ट्रेंडस्टर

किस्मत का साथ ना देना तो अक्सर सुना है पर किस्मत का सूद समेत हिसाब वसूलना कम ही देखने को मिलता है। अवनीश मोहन की आध्यात्म, धर्म, योग व् आयुर्वेद में रूचि थी पर नौकरीपेशा होने के कारण इनमे कम समय दे पाता था। किसी विषय में रूचि होने से आप स्वतः अपने जाननेवालो में उस विषय के अंधों में काणे राजा बन जाते है। विषय के अंधो से वर्षो तक लगातार मिलती तारीफ़ से ऐसे काणे स्वयं को महाज्ञानी-स्कॉलर समझने का भ्रम पाल लेते है। धीरे-धीरे अवनीश में ये अहंकार विकराल रूप धर चुका था। अब अपनी रूचि से बाहर की बातों में भी वो घुसपैठ कर देता और अपनी बातें, निष्कर्ष सामने वाले पर बड़े आक्रामक अंदाज़ में थोपता था। अपनी बात काटे जाने पर तो वो आग उगलता ड्रैगन बन जाता। कभी कबार सब निष्फल होने पर अपना पक्ष ऊपर रखने के लिए उसका आखरी दांव होता कि "अभी बच्चे/नादान हो! मुझे 23 वर्ष का अनुभव है फलाना फील्ड का..."

उनकी यह स्वघोषित ख्याति स्थानीय चैनल में पहुँची और एक विदेशी अनुसंधानकर्ता से योग व आयुर्वेद पर चर्चा हेतु उन्हें आमंत्रित किया गया। निमंत्रण के बाद फूल के डायनासोर हुए अवनीश द्वारा कब चर्चा को बहस में बदल दिया गया पता ही नहीं चला। विदेशी स्कॉलर ने उनकी अनेक धारणाएं, भ्रम गलत साबित किये और उनके ज्ञान को सुपरफिशियल (सतही) करार दिया। इतनी कॉम्प्रीहेंसिव हार के बाद आदतानुसार अवनीश के मुँह से जादुई शब्द निकले - "मुझे 23 साल का अनुभव है ...", सामने बैठे स्कॉलर ने हँसते हुए कहा - "वर्षो में अनुभव को नापा नहीं जा सकता, फिर भी मुझे 23 दुनी 46 वर्षो का अनुभव है इन विषयों के अध्यन्न, अनुसंधान का।"

जीवन की सबसे बड़ी हार और धूलधूसरित अहंकार के साथ दुखी मन से अवनीश घर को चले और रास्ते में खुद को ढाँढस बंधाया कि इंग्लिश प्रोग्राम ज़्यादा लोग नहीं देखेंगे और वह अपने सर्किल के अंधों में काणे राजा बने रहेंगे।

समाप्त!

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Monday, November 16, 2015

#Update


मेरी नयी बाल कहानी और लेख बागेश्वरी पत्रिका के नवंबर 2015 अंक में प्रकाशित। #मोहितपन #मोहित_ज़हन #mohitness #mohit_trendster #Bageshwari