...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Tuesday, December 12, 2017

कला में संतुलन की कला :) #Hindi_Article


“लाइफ इज़ नॉट फेयर”, ये प्रचलित कहावत है। मैंने पहले कई बार कलाकारों की दयनीय स्थिति पर बात रखी है। आज एक अलग सिरे से विचार रख रहा हूँ।  कलाकार अगर प्रख्यात हो जाये तो जीवन सही है और अगर ना हो तो लाइफ इज़ नॉट फेयर? नहीं! मैंने अलग क्षेत्रों के कई तरह के कलाकारों में एक बात देखी, जिसे शायद वो समझा ना पाएं। प्रख्यात होना बहुत से कलाकारों के लिए हानिकारक होता है। कई लोग लगातार अपनी कला में कुछ ना कुछ करते, उसके बारे में सोचते रहना चाहते हैं। प्रख्यात होने के बाद व्यक्ति को अवसर मिलते हैं, जीवन-यापन सुगम हो जाता है, पर उस स्तर पर आने के बाद व्यक्ति क्या खो देता है…

जब आपके हर काम पर जनता की नज़र हो और हर कला के पीछे किसी और के लाखों या करोड़ों रुपये लगे हों तो अपने आप दबाव बन जाता है। वो स्वच्छंदता जो इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट के पास होती है, उसका काफी सीमा तक बलिदान देना पड़ता है। उदाहरण के लिए बड़े स्तर पर एक म्यूजिक एल्बम या किताब प्रकाशित होने पर उसके प्रचार-प्रसार, लोगों को उस किताब/संगीत के अवयव बार-बार समझाने में काफी समय व्यर्थ होता है। कई वर्षों तक ऐसा होने पर कलाकार अपने सक्रीय जीवन का (जब उसका मस्तिष्क और शरीर अच्छी हालत में रचनात्मकता का साथ देते हैं) बहुत बड़ा हिस्सा और शक्ति प्रमोशन, फॉलो-अप आदि गतिविधियों में बिता देता है।

कलाकार की रचनात्मक स्वतंत्रता केवल उसके लिए ही नहीं समाज के लिए महत्वपूर्ण है। सफल होने के बाद जुड़े लेबल, पैसे और औद्योगिक प्रतिबद्धता के सीमित दायरे में वह पूरी तरह अपनी मर्ज़ी का मालिक नहीं हो पाता। चाहे बाहर से वह अपने निर्णय लेता दिखे पर उसके अवचेतन मन में आ चुकी बातें अक्सर उसे रोक लेती हैं। साथ ही प्रयोगों के आभाव में एक कलाकार के रूप में उसका विकास धीमा पड़ जाता है। हालाँकि, छोटी संख्या में कलाकार ऐसे भी हैं जो इन दो बातों के बीच संतुलन बनाने में सफल हो जाते हैं। ये संतुलन पूर्णतः व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। ऐसा तभी संभव है जब कला को अपनी प्राथमिकता रखा जाए, चाहे व्यक्ति किसी भी स्तर पर पहुँच चुका हो।

इस नये कोण से बातों को देखने का आशय संतुलन बनाने का महत्त्व बताना था। याद रखें कला चलाये रखने के लिए कुछ हद तक सफलता भी ज़रूरी है। पैसों के अभाव, मजबूरियों में कला ही छोड़नी पड़े से बेहतर चाहे खालिस कमर्शियल ही सही कला का जारी रहना है। 

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Artwork - Richard F.
#ज़हन

Thursday, December 7, 2017

ख़बरों की ऊपरी सतह


एक नामी कलाकार हैं जिनका नाम नहीं लूँगा, जिनका नाम उनके काम से ना होकर उनकी मार्केटिंग और ब्रांडिंग से हुआ है। थोड़े वर्ष पूर्व अपने क्षेत्र में उन्होंने कुछ व्यंगात्मक काम किये जो देश की व्यवस्था, सरकार पर कटाक्ष थे। ये काम काफी जेनेरिक नेचर के थे यानी आज़ादी के बाद से हर रोज़ देश भर में ऐसे कई व्यंग बनते हैं, चलते हैं, प्रकाशित होते हैं...पर पता नहीं कैसे उनकी 'कला' पर किसी की नज़र पड़ी और उन्हें गिरफ्तार कर कुछ दिनों के लिए जेल भेज दिया गया। छोटी बात पर ना किसी का ध्यान जाता है और ना आसानी से गिरफ्तारी होती है। हाँ, अगर किसी को स्टंट करके करोड़ों की भीड़ (जिनमें हज़ारों ऐसे भी हैं जो वैसी कला बल्कि बेहतर कला दशकों से कर रहें है) से बिना 20-25 वर्ष की मेहनत एक झटके में ऊपर आना है...तो अलग बात है। गिरफ्तारी हुई और उसके फोटो फैले बाकायदा ऐसे जैसे फोटोशूट चल रहा हो। छोटी बात की कुछ दिनों की सजा काट साहब बाहर आये और तब तक ये ख़बर अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया पकड़ चुका था। वहाँ के लोगों ने बिना दिमाग पर ज़ोर डाले इस बात को 'तीसरी दुनिया' के देशों की बर्बरता की श्रेणी में रख दिया और ये कलाकार स्टार बन गया। टीवी, रेडियो पर आने लगा। अच्छी बात है, अगर प्रतिभा नहीं है तो स्टंट के दम पर कुछ समय के लिए ही सुर्ख़ियों में रहा जा सकता है। जो अच्छी बात नहीं हैं वो इसके बाद की है। बात ठंडी होने के बाद इन्होने समाज सुधारक का तमगा ले लिया और उसके आधार पर इनसे जुडी संस्थाओं को फंड मिलने लगे, ऐसी जगहों, आयोजनों पर ये "वक्ता" बन जाने लगे जहाँ विशेषज्ञ भी सोच में पड़ जाये। 

पहली आपत्ति - आम विचारों को स्टंट की आड़ में छुपाकर दार्शनिक बनना। 
दूसरी आपत्ति - दशमलव हुनर लेकर 95-100 प्रतिशत स्तर पर मौजूद कलाकारों की जगह वाली इज़्जत पाना। 
तीसरी आपत्ति - एक स्टंट के बल पर जीवन भर मुफ्त की खाना। 
चौथी आपत्ति - बाद में पैसे के दम पर 'ऑन रिकॉर्ड' काम के मामले में जाने कितने पहाड़ उखाड़ने वाले की तरह पहचाने जाना। 
पांचवी आपत्ति - इस सफलता के बाद बहुत से लोग इस तरह के शॉर्टकट लेने को प्रेरित होंगे।

किसी विषय पर मन बनाने से पहले ख़बरों की ऊपरी सतह को हटाकर ज़रूर देखें।
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Monday, July 10, 2017

विकिपीडिया और बिकाऊ मीडिया के पार की दुनिया (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन


नाखून चबाती मशहूर अभिनेत्री मेघना कमल कमरे में इधर-उधर टहल रही थी। फ़ोन पर अपने मैनेजर पर चिल्लाती हुई वो टीवी न्यूज़ चैनल्स बदल-बदल कर खुद पर आ रही खबरों को देखने लगी। पिछली रात पास के अपार्टमेंट में से किसी ने उसकी एक वीडियो बनाई थी जिसमें वो एक पिल्ले को किक मारती हुई अपने बंगले से बाहर कर रही थी। शुरुआत में हरकत कर रहा पिल्ले का शरीर मेघना की 5-7 लातें खाने के बाद निर्जीव हो गया। विडिओ पर ना सिर्फ जानवर के अधिकारों वाली संस्थाओं की तीखी प्रतिक्रिया आ रही थी बल्कि देश-विदेश की जनता मेघना की इस हरकत से गुस्से में थी। बड़े निर्माताओं, निर्देशकों पर मेघना को अपनी फिल्मों से बाहर करने, कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का दबाव बढ़ रहा था। कुछ ही देर में मेघना के घर के बाहर मीडिया का तांता लग गया। 

मेघना ने अपने पिता और बीते ज़माने के सुपरस्टार अभिनेता हरीश कमल को फ़ोन किया। 
"पापा...आई ऍम सॉरी, मेरी वजह से आपका नाम भी उछल रहा है। नशे में करियर बर्बाद कर लिया! सब ख़त्म हो गया!"

हरीश शांत स्वर में मेघना को समझाने लगे - "चिंता मत कर मेघू बेटे! ऐसे करियर बर्बाद होने लगते तो मैं कबका एक्टिंग छोड़ चुका होता। तेरा वीडियो मैंने देखा है। एक पार्सल भेजा है तुझे, बाकी फ़ोन पर नहीं समझाऊंगा। अपने मैनेजर और टीम को बुला ले उन्हें समझा दिया है, उनकी बात ध्यान से सुनकर वैसा ही करना... "

उस शाम मेघना ने अपने घर पर ही प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी। कुछ सवालों के जवाब देने के बाद वह अपनी रिहर्स की हुई लाइनों पर आ गई। 

"मैं जानती थी कि भारत के ज़्यादातर लोगो की जो मानसिकता हैं उनसे मुझे ऐसी ही प्रतिक्रिया मिलेगी। कल रात मैंने जानबूझ कर एक रोबोटिक खिलौने पप्पी को मारा, जो दूर से एकदम असली लगता है। यह देखिये इस पार्सल में उस से मिलता-जुलता खिलौना है। मेरा उद्देश्य लोगो में निरीह जानवरों के अधिकार, उनपर होने वाली हिंसा, मानव आबादी से कम होते जंगलों के लिए जागरूकता बढ़ाना था और देश क्या पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस स्टंट से बेहतर मुझे कोई उपाय नहीं लगा। इस बीच मुझे चुभने वाली एक सच्चाई का सामना करना पड़ा, एक लड़की के लिए चाहे वो एक सफल अभिनेत्री ही सही इस देश के लोग अपनी छोटी सोच दिखा ही देते हैं। भारत के लोगो और कई सेलेब्रिटीज़ की बातों ने मुझे आहत किया है।"

इतना कहते ही मेघना प्रेस वार्ता में रोने लगी। कैमरों की चमक से आँगन जगमगा उठा। हर ओर मेघना की तारीफ़ और चर्चे थे। इस घटना के बाद मेघना को कुछ अवार्ड मिले, तीन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मेघना को अपना गुडविल एम्बेस्डर बनाया और वो बड़े बजट निर्माताओं की पहली पसंद बन गयी। एक दिन हरीश कमल ने मेघना को हँसते हुए बताया कि मेघना का किया कांड तो कुछ भी नहीं उन्होंने अपने समय में कितने कानून तोड़े, लोगो को गायब तक करवाया पर आज भी देश उन्हें पूजता है। 

समाप्त!
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Image - Watercolor Painting by artist Shilpi Mathur
#mohitness #mohit_trendster

Tuesday, April 18, 2017

मरणोपरांत आशीर्वाद (कहानी) #ज़हन


पत्नी के देहांत के बाद रविन्दु सामंत गहरे अवसाद में चले गए थे। उनकी दिनचर्या अपने कमरे तक सीमित हो गयी थी। वहीं उनके तीन बच्चो की अब और इंतज़ार करने की इच्छा नहीं थी। एक शांत दिन उनके 3 बच्चो ने उन्हें बेहोशी की दवा सुंघा कर बेहोश किया और फिर पंखे से टांग कर उन्हें मार दिया गया, कुछ इस तरह कि पत्नी की मौत के शोक में उनकी मौत एक आत्महत्या लगे। उनकी लिखाई से मिलता-जुलता नोट रखने जा रहा उनका छोटा बेटा राजदीप कुछ देखकर ठिठक गया। पुलिस के सामने दी जाने वाली अपनी कहानी का रिहर्सल कर रहे उसके बड़े भाई-बहन ने कारण पूछा तो जवाब आया - "यहाँ तो पहले से एक नोट पड़ा है!"

"नोट है या ऐसे ही कोई रसीद-वसीद?"

राजदीप - "नोट ही है, लिखा है वो हम पर बोझ नहीं बनना चाहते थे और संपत्ति हम तीनो में बाँटकर आज रात पापा हमेशा के लिए ऋषिकेश के एक आश्रम जाने वाले थे।"

3-4 क्षण अवाक रहने के बाद तीनो बिना नज़रे मिलाये फिर अपने काम में लग गए। कुछ समय बाद पुलिस औपचारिकता निभा कर चली गई। एक हफ्ता बीतने के बाद रविन्दु सामंत के इंश्योरेंस एजेंट की शिकायत पर पुलिस का जांच दल दोबारा उनके घर आया। बीमा एजेंट के अनुसार रविन्दु सामंत के सुसाइड नोट की लिखावट उनकी राइटिंग से पूरी तरह नहीं मिलती थी। पुलिस टीम द्वारा जांच के लिए कुछ सामग्री जप्त की गयी और थोड़े दिन के बाद नतीजे की पुष्टि की बात हुई। तीनों भाई-बहन के चेहरे सफ़ेद पड़ गए और उन्हें जेल दिखने लगा। उन्हें यकीन था कि पुलिस के विशेषज्ञ लिखावट में अंतर पकड़ लेंगे। 5 दिनों बाद उन्हें सभी पत्र और जांच के लिए जप्त की गयी सामग्री वापस कर दी गयी। राजदीप अचंभित था कि आखिर कैसे दोनों लिखावट मिल गयीं और वो लोग बच गए? वह सारे पत्र देखने लगा और एक कागज़ देखकर उसे सांप सूँघ गया।  भाई ने कहा "चलो जान बची, पर तू सिर पकडे क्यों कांप रहा है? ठण्ड रख! अब कोई नहीं आ रहा हमें पकड़ने।"

राजदीप - "सुसाइड नोट की राइटिंग तो मैच हो गयी पापा की लिखावट से पर यह सुसाइड नोट वो नहीं जो मैंने लिखा था... "

समाप्त!
#mohitness #mohit_trendster #मोहित_शर्मा_ज़हन

Tuesday, April 11, 2017

लालच का अंकुर (कहानी) #ज़हन


वास्तु वन्य अभयारण्य की खासियत उसके तरह-तरह के पशु, पक्षी थे। इतने कम क्षेत्रफल में इतनी अधिक विविधता पर्यटकों को लुभाती थी क्योंकि उन्हें पता था कि यहाँ आने पर उन्हें कई जंगली और लुप्तप्राय जानवर ज़रूर दिखेंगे। वास्तु अभयारण्य की दुर्गम स्थिति और अच्छी सुरक्षा के कारण अभी तक यह स्थान तस्करों, शिकारियों से बचा हुआ था। अभयारण्य के पास ही हाथी-महावतों की बस्ती थी जो पर्यटकों और वन अधिकारीयों को अनुज्ञप्त जंगली क्षेत्र में घुमाते थे। 12 महीने मेहनत के बाद भी मुश्किल से सभी महावत परिवारों का गुज़ारा चलता था। अपने पशु साथियों से महावतों का प्रेम ऐसा था कि चाहे अपने लिए कुछ कम पड़ जाए पर हाथियों को कोई कमी नहीं होनी चाहिए। एक बार किसी महावत ने लालचवश हाथीदांत के लिए तस्कर से संपर्क किया, जब यह बात बस्ती में फैली तो उसे वन अधिकारीयों के हवाले कर दिया गया और उसके परिवार को बस्ती से निकाल दिया गया। 

बस्ती का कोई मुखिया नहीं था पर 2-3 वृद्ध महावतों की बात सब मानते थे, जिनमे से एक का नाम था सुमंकुट्टी। जंगल में कुछ चेक पोस्ट्स का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसके शोर से उनके 2 हाथी भटक गए और उनमे से एक का शरीर बिजली के तार से छू गया। तेज़ करंट लगने से वो हाथी मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया। उसके चारो ओर बैठे डेढ़ दर्जन महावत और उनके परिवार शोक में डूबे थे। कुछ देर बाद सुमंकुट्टी के लड़के सूर्यकुट्टी ने उनके कान मे कुछ कहा। अपने लड़के की बात सुनकर वो आगबबूला हो गए और छड़ी से सूर्यकुट्टी की पिटाई करने लगे। लोगो के पूछने पर उन्होंने बताया कि उनका पुत्र मरने वाले हाथी के दांत तस्करो को बेचने की बात कर रहा है ताकि कुछ पैसे आ सकें। 

अपने संगी-साथियों की शंका भरी नज़रों को भांप कर सुमंकुट्टी बोले, "आप लोगो ने पहले इक्का-दुक्का हाथीयों के मरने पर भी ऐसे सवाल किये हैं कि जब हाथी मर गया तो उसके दांत को बेचें या ना बेचें क्या फर्क पड़ता है, जो तब मैंने टाल दिए या सही से सबको समझा नहीं पाया। बात मृत हाथी या जीवित हाथी की नहीं है। एक बार तस्कर उद्योग रुपी शेर के मुँह में खून लग गया तो हमारे हाथी और यह पूरा अभयारण्य उनकी नज़र में आ जाएगा, वो नये हथकंडे, लालच लेकर आयेंगे और फिर यह वास्तु पशु विहार केवल नाम का अभयारण्य रह जाएगा...हमारे अलावा सरकार क्या करती है उसपर हमारा बस नहीं पर अपने से जितना ज़्यादा हो सके उतना अच्छा इसलिए लालच का अंकुर फूटने से पहले ही बीज हटाना बेहतर है। "

समाप्त!

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Other Titles: अन-अंकुरित, अन-अंकुरण 
Read कुपोषित संस्कार (कटाक्ष)
#मोहित_शर्मा_ज़हन #mohitness #mohit_trendster

Wednesday, March 29, 2017

जीत का समझौता (कहानी)


इंटरकॉन्टिनेंटल कप के पहले दौर में हारकर बाहर होने के बाद पापुआ न्यू गिनी क्रिकेट खेमे के एक कोने में 2 खिलाडियों के बीच गंभीर वार्ता चल रही थी। 

"आप जब खुद यह टीम नहीं छोड़ रहे हैं तो मुझसे ऐसा करने के लिए क्यों कह रहे हैं?" परेशान होकर मेज़ के कोने को मसलने की कोशिश करते क्रिकेटर पॉल ने अपने गुरु जैसे सीनियर जिम्मी से पूछा। 

जिम्मी सोच रहा था कि किस तरह ऐसे वाक्य गढ़े जो पॉल की चिंता को कम करें। फिर अपने निर्णय का ध्यान करते हुए वह बोला - "मुझे पापुआ न्यू गिनी में क्रिकेट का भविष्य नहीं दिखता। बाहर निजी क्रिकेट लीग्स में तुम जैसे खिलाडियों को अच्छे अवसर मिलते हैं।"

पॉल - "आप मुझसे बेहतर क्रिकेट खेलते हैं। तो अकेले मेरे जाने का क्या मतलब?"

जिम्मी - "बात को समझो पॉल! तुम अभी से बाहर जाकर संघर्ष करोगे तब जाकर कुछ सालों बाद उसका फल मिलेगा। यहाँ से निकलने में जितनी देर करोगे उतना ही बाहर की लीग्स में सफल होने की सम्भावना कम हो जायेगी। दो साल बाद वर्ल्ड कप क्वालिफाइंग टूर्नामेंट है, जिसमे पापुआ न्यू गिनी के जीतने की और अपना एक दिवसीय दर्जा बचाने की ना के बराबर उम्मीद है। मैंने किशोरावस्था से 2 दशक से अधिक इस देश के क्रिकेट में लगाएं हैं। ना के बराबर ही सही पर दशमलव में कुछ उम्मीद तो है? बस उसी के लिए रुका हूँ...पर तुम्हे यह सलाह नहीं दूंगा।"

पॉल - "आप मेरे आदर्श रहे हैं..."

जिम्मी - "मुझे अपना आदर्श क्रिकेट मैदान के अंदर तक मानो, उसके बाहर अपनी स्थिति अनुसार बातों को समझो और करो। तुम देश के बाहर जाकर किसी विदेशी टीम में नाम कमाओगे तो भी इसी देश के वासी कहलाओगे, इस धरती का नाम रोशन करोगे, क्रिकेट के टैलेंट स्काउट्स तुम्हारे नाम का हवाला देकर यहाँ नए खिलाड़ी खोजने आयेंगे। हारे हुए संघर्ष से बेहतर जीता हुआ समझौता है।"

पॉल के झुके सिर को हामी में हिलता देख जिम्मी ने खुद को दिलासा दिया कि इस डूबते जहाज़ से उसने एक यात्री को बचा ही लिया। 

समाप्त!

#ज़हन

Saturday, February 18, 2017

राजा की मिसमिसाहट (हास्य कहानी)

Digital Artwork - Andrei Militaru‎

बहुत पुरानी बात है...ऐसा लेखक को लगता है पर आप अपने हिसाब से टाइमलाइन सेट कर लो, कोई फॉर्मेलिटी वाली बात नहीं है। मैटरनल काका नाम का एक राजा था, जिसके द्वारा स्थापित पीपणीगढ़ नामक एक विशाल राज्य था, मतलब भोम्पूगढ़ जितना विशाल नहीं पर फिर भी विशाल मेगा मार्ट से बड़ा तो कहूंगा मैं! तो राजा मैटरनल काका को अपनी सेना और आम जनता को परेशान कर के बड़ा सुख मिलता था। आखिर अपने से कमज़ोर को सताने में किसे मज़ा नहीं आता? पता नहीं किसी वैद्य ने उन्हें मानसिक थेरेपी बताई थी या यह चीज़ मैटरनल ने स्वयं सोची थी। 

एक दिन मैटरनल काका रोज़ की खुराफात करने निकले थे और उन्हें टीले के पीछे एक सिर पर बड़े सलीके से काढ़े गए बाल दिखे। अचानक उनके मन में मिसमिसी छूटने लगी और उनकी उँगलियों में थिरकन मचने लगी। वो तेज़ी से उन बालो के स्वामी के पास पीछे से आये और ऐसे कोण से लात जमाई की वह व्यक्ति कलामंडी खाता हुआ नीचे जाकर गिरा। उसका शरीर मिट्टी में लोटमपोट हो गया पर उसके बाल अभी तक व्यवस्थित थे। यह बात पूर्णतावादी मैटरनल को कहाँ रास आने वाली थी? राजा ने उस भ्रमित व्यक्ति का खोपड़ा पकड़ के मिट्टी में लोटा दिया। कुछ इस तरह कि बेचारे व्यक्ति का एक-एक बाल भूरा हो जाए। 

अपनी विजय का आनंद उठाते मैटरनल काका को तब झटका लगा जब वह व्यक्ति एक सिद्ध मुनि निकला। धूलधुसरित मुनि पहले थोड़ी देर बच्चो की तरह रोये, फिर शांत होने के बाद जब वो राजा को श्राप देने को हुए तो मैटरनल अपने सैनिको के साथ वहाँ से भाग गया। उसे लगता था कि श्राप सिर्फ आमने-सामने दिया जा सकता है, ऐसा ही उसने कथाओं में सुना था। मुनि के नाक, कान, मुँह में मिट्टी भर गयी थी इसलिए वो आराम से श्राप सोच नहीं पाए और गुस्से में उन्होंने राजा के राज्य के कई गाँवो  को अजीब सा श्राप दे डाला। उस दिन के बाद से किसी गाँव में सिर्फ लड़के जन्म लेने लगे और किसी गाँव में सिर्फ लड़कियां। शुरुआत के कुछ महीने तो सब सामान्य रहा पर धीरे-धीरे लोगो को आभास हुआ कि किसी अपशगुन या श्राप के कारण राज्य के गाँवों में यह अजीब असंतुलन बढ़ रहा है। राजा के साथ रहने वाले मंत्री ने सभी घटनाओ का अवलोकन किया और पाया की मैटरनल द्वारा किसी सिद्ध व्यक्ति को परेशान करने के कारण ऐसा हो रहा है। राजा को सलाह दी गयी कि अबतक जिन सिद्ध लोगो, मुनियों को उसने परेशान किया है सबसे क्षमा मांग ले। वहीं मैटरनल काका अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था, उसने सभी गर्भवती महिलाओं, जवान युवक-युवतियों को उनके गाँव के अनुसार इस तरह चिन्हित कर बसाया कि आगे पैदा होने वाले शिशुओं में गाँव के हिसाब से निर्धारित हो रहे लिंग की बाधा ना रहे। राजा ने ऐसी अकलमंदी जीवन में पहली बार दिखाई थी और परिणाम जानने के लिए वह उत्सुक था...कुछ महीनो बाद हद हो गयी! अब राज्य में पैदा होने वाले सभी बच्चे अलैंगिक या किन्नर के रूप में पैदा होने लगे, इसलिए कहते हैं ज़्यादा ओवरस्मार्टनेस कई बार गोबरस्मार्टनेस में बदल जाती है। 

राजा हार कर सभी मुनियों के पास गया और अपनी भूली-बिसरी भूलों की क्षमा-याचना की, तब एक गंजे ऋषि ने उसे बताया कि किस तरह मैटरनल काका ने उसे पूजा करते हुए टीले से गिराया और उसे धूल-मिट्टी में लोटा दिया। राजा के मौका-ए-वारदात से भागने के बाद उसने झुंझलाहट में मैटरनल के राज्य को ऐसा श्राप दिया। उस दिन के बाद से मुनि प्रतिशोध में जलता रहा और उसने अपने सुन्दर, घने बाल राजा के पश्चयताप करने तक के लिए कटवा लिए (या शायद कुछ इतिहासकारो की माने तो उस घटना के बाद उन्हें काफी डेंड्रफ हो गई थी इसलिए बाल कटवा लिए)। अपनी बात वापस लेने और बाल दोबारा उगाने की उसकी एक ही शर्त थी...

...मुनि ने मैटरनल को पूरी शिद्दत से कीचड़, मिट्टी लोटा-लोटा के परमसुख की प्राप्ति की और अपना श्राप वापस लिया। राज्य के सभी नवजात सामान्य हुए और राजा को अपनी गलती का सबक मिला... मतलब अब वो किसी अनजान व्यक्ति का पूरा बैकग्राउंड देखकर उसे छेड़ता है। 

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

Sunday, February 5, 2017

अमीर की हाय (कहानी) #ट्रेंडस्टर

दूसरे हृदयघात के बाद आराम से उठने के बाद उद्योगपति तुषार नाथ का व्यक्तित्व बदल गया था। पहले व्यापार पर केंद्रित उनका नजरिया अब किसी छोटे बच्चे जैसा हो गया था। छोटी-छोटी बातों पर चिढ जाना, उम्र के हिसाब से गलत खान-पान और व्यापार में हो रहे घाटे पर ध्यान ना देना अब उनके लिए आम हो गया था। परिवार और परिचितों को साफ़ लग रहा था कि उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। 

एक दिन उन्होंने अपनी दुकानों के सभी कर्मचारियों और अपने परिचित जनो को एक मंदिर के पास बुलाया। सभी चकित और कारण जानने के लिए आतुर थे कि ऐसी क्या आपात स्थिति आन पड़ी जो तुषार नाथ जी ने दो-ढाई सौ लोगो को अपने घर से अलग एक जगह बुलाया। तुषार जी की हरकतें और चेहरे के हाव-भाव देख कर लग रहा था कि कुछ गड़बड़ है। वो एक मंच पर चढ़े और माइक्रोफोन से सभी एकत्रित लोगो को संबोधित करने लगे। 

"हेल्लो फ्रेंड्स! आज मैं आप सबको भोला भिखारी से मिलवाना चाहता हूँ।" इतना कहकर उन्होंने मंदिर की सीढ़ियों पर अंगड़ाई ले रहे एक भिखारी की तरफ इशारा किया। 

एक कर्मचारी अपने मित्र से बोला - "मैं पहले ही कहता था कि हार्ट अटैक के बाद से बुडढा सटक गया है! लगता है अपनी संपत्ति इस भिखारी को देने वाला है।"

कुछ ऑफ टॉपिक बातें करने के बाद तुषार नाथ को अपना असल मुद्दा याद आया - "....हाँ, तो मैं कह रहा था कि आप सभी लोग भोला को हाय दो। मतलब हॉय-हेल्लो वाला नहीं जो दिल से किसी के लिए हाय निकलती है वो वाली हाय!"

ये क्या था? मतलब ये हुआ क्या? कुछ अचंभित, कुछ अपनी हँसी छुपाते पर सबके मन में यही बात थी। 

तुषार नाथ - "मंदिर से लौटते हुए गलती से मेरा पैर इसके पैसे वाले कटोरे पर लग गया और इसके सिक्के सीढ़ियों पर नीचे बिखर गए। जब गुस्से में यह मेरी ओर मुझे मारने को बढ़ा तो मेरे गार्ड ने इसे 1 थप्पड़ लगा दिया। फिर इसने बोला कि एक गरीब की बड़ी हाय लगेगी मुझे....पर इस नादान को पता नहीं कि मैं कौन हूँ! इसलिए आप सब अमीरो, मिडिल क्लास लोगो को यहाँ भोला को लगभग 200 सामूहिक हाय लगाने के लिए बुलाया है।"

किसी त्यौहार पर मंदिर के पास से जयकारों की तेज़ ध्वनि आती थी। आज एक सामान्य दिन ऐसी ही एक आवाज़ गूँजी....

"....हाय!"

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन
Artwork: Katan Walker