...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Saturday, December 12, 2015

सपने वाले अंकल जी (Micro Fiction Experiment # 05) #mohitness



एक रात वृद्ध अंकल जी को अचानक सपने दिखने लगे।
रंग-बिरंगे, प्रकृति के, खेल-खिलोनो के, बच्चो के, समुद्र के, युद्ध के, मौसम के, अश्लील वाले, यात्रा के और विभिन्न विजुअल्स। 

सपने उन्हें आते थे कभी कबार पर इतने अधिक और इस तरह के रोलरकोस्टर दृष्टांत तो कतई नहीं। 
अंदाज़ लगाया कि शायद ईश्वर ने उन्हें मरने से पहले अपने आस-पास मौजूद दूसरो के सपने देखने की शक्ति दी है, चलो इस बहाने रोज़ नींद में ही सही कुछ मनोरंजन हो जाएगा। 

ध्यान केंद्रित कर उन्होंने किसी भी व्यक्ति के नये-पुराने सपने पढ़ने की शक्ति अर्जित कर ली, चलो इस बहाने संपत्ति का अधिक हिस्सा किसे दूँ यह निर्णय हो जाएगा। 
पहले बेटे के सपने नीरस थे, हुंह जैसे ये कुछ नहीं बोलता वैसे ही इसके सपने भी बोगस। छोटे बेटे के सपने देखता हूँ, वो मुझे बहुत प्यार और सम्मान देता है। 
अरी मईया! पहले ही सपने में मेरी चिता जला कर उसके अराउंड शादी के फेरे ले रहा है। अब ना देने का इसे रुड़की वाला प्लाट। 

छोटे बेटे के कई सपनो में बूढ़े अंकल ने अपनी मौत, पिटाई, बेइज़्ज़ती देखी। 
वैसे तो बड़ा भी कुछ ख़ास नहीं पर लुच्चो की इस टक्कर में कुछ दशमलव अंको से मैं उसे जिताता हूँ। ज़्यादा संपत्ति बड़े को, बाकी थोड़ा बहुत हिस्सा राम गोपाल वर्मा के उस विकृत रूप, मेरे छोटे बेटे को। 

अंकल ये भी हो सकता था कि आपके छोटे बेटे को मनोविज्ञान, अपराध, डार्क आदि विषयों में रूचि हो और आप उसके दिल के सबसे करीब होने के कारण उसके विकृत ख्वाबों में कहीं ना कहीं आ जाते हों। अंकल-अंकल....लो बिना ये विचार किये ही काल के ग्रास में समा गए अंकल !  

- मोहित शर्मा (ज़हन) 
---------------------------------------
#mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelancetalents #freelance_talents

Read Micro Fiction Experiment # 04

Monday, December 7, 2015

नासमझ इतिहास - Micro Fiction Experiment # 03 #mohitness

*) - अठारवीं सदी की बात है, दुनिया के सबसे दुर्गम नोलाम द्वीप पर तब तक कोई मानव नहीं पहुंचा था। 

*) - बेहतर जहाज़ों और तकनीकों के बल पर दुनिया के तीन शक्तिशाली देशों में वहाँ सबसे पहले पहुँचने की होड़ लगी थी। 

*) - एक देश द्वारा दल भेजे जाने की खबर के तुरंत बाद बाकी दोनों देशों ने भी आनन-फानन में अपने जहाज़ी दस्ते रवाना किये। 

*) - देश A और देश C लगभग एकसाथ वहां पहुंचे। संचार का कोई माध्यम ना होने के कारण अब एक ही रास्ता बचा था। 

*) - A और C के जहाज़ी दलों में एक दूसरे को समाप्त करने के विध्वंसक युद्ध छिड़ गया। 

*) - कुछ घंटो बाद आखिरकार देश C के दल ने देश A के क्रू को ख़त्म करने के साथ-साथ उनका जहाज़ डुबो दिया।

*) - दल C के कप्तान और 4 सदस्य ज़िंदा बच पाए, तभी उन्हें देश B का जहाज़ आता दिखा। 

*) - अब दुनियाभर  में इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता है कि दुर्गम नोलाम टापू पर सबसे पहले देश B के लोग पहुँचे। 
-----------------------
#mohit_trendster #trendybaba #mohitness #freelancetalents

Read Micro Fiction Experiment # 02 

Saturday, November 28, 2015

Micro Fiction Experiment (Kidnap) - Mohit Trendster


Theme: अपहरण (Kidnapping) - Mohit Trendster

*) - बाहरी लोग सही कहते थे जंगली लोग जादू-टोना करते है। दो महीनों तक घने जंगल की गुमनामी में बंधक बना पर्यटकों का दल आज उन्हें बचाने आये कमांडोज़ और उनके अपरहरणकर्ता कबीले वालों के बीच में ढाल बनकर खड़ा था। 

*) - बब्बन पाशा चिंतित था। बड़े गुटों के कुछ आत्मघाती, अपहरण मिशन फेल हुए तो बिल उसके गिरोह के नाम फाड़ दिया गया। अब भारी सुरक्षा से उसने एक विदेशी राजनयिक को अगवा किया तो कोई मान के नहीं दे रहा उल्टा उसके आतंकी संगठन से मिलते जुलते नाम वाले संगठन को श्रेय दिया जा है खबरों में। 

*) - क्रोध में बिलबिलाता पर कुछ करने में असमर्थ मोज़ेस ठगा सा महसूस कर रहा था क्योंकि एक तो वह नास्तिक था और तो राजनीती वगैहरह में नहीं पड़ता था। बेचारा बस एक टेनिस मैच देखने आया था, वो भी जीवन में पहली बार। अब किन्ही धर्मों की लड़ाई में उसको क्यों किडनैप कर लिया गया। 

*) - विभोर ने बंदूकें फिल्मों में ही देखी थी। उसका मन थर-थर काँप रहा था जबकि बाहर से उसका स्थिर-शांत तन तरह-तरह की भाव भंगिमाओं से अपनी 4 साल की बच्ची का समस्या से ध्यान बँटाने और सब ठीक हो जाने का दिलासा देने में लगा था। 

*) - किटकिटाते दांतों से खुद को गरियाने की कोशिश करती गरिमा सोच रही थी कि जहाँ भाग कर आयी उस वीराने में इस दन्त-कुड़कुड़िया सर्दी से बेहतर तो वो गुंडे ही रख रहे थे। 

*) - बंगले के बाहर जमा किडनैपर गुट का मकसद हत्या नहीं था, पर दंगों से उबर रहे शहर में अफवाहें ज़ोरो पर थी। दुछत्ती में छिपे परिवार के अन्य सदस्यों की जान बचाने के लिए माँ ने रो रहे नवजात का गला घोंट दिया। 

*) - अब उसे पता चला कि गिरोह के सरगना ने बंधक से आँखें मिलाने को क्यों मना किया था। जाने क्यों अपने किडनैपर को भी उम्मीदों से देख रहीं थी वो आँखें...कसम से अगर 2 क्षण उन आँखों में और देख लेता तो साइड बदल कर उन्ही का हो जाता। 

 #mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelance_talents

Monday, November 23, 2015

तेज़ाबी बरसात (लघुकथा) - मोहित ट्रेंडी बाबा


डॉक्टर्स द्वारा हफ्ते-दो हफ्ते का समय शेष पता चलने पर विधिचंद अपने जीवन की लंबी शो-रील के साथ गुपचुप बागीचे में बैठे रहते। देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना संघर्ष, स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के लिए सपने, उम्मीदें...फिर समझौते करते अब तक का सफर। 2 दिनों बाद भारी बरसात होने लगी तो उन्हें याद आया कि जीवन की शो-रील में बचपन वाला हिस्सा चलाना रह गया दिमाग में। जाने कितनी बारिशों में गाँव की मित्रमण्डली के साथ की गयी धमाचौकड़ी के दृश्य आज भी उनके ज़हन में ताज़ा थे। नथिंग टू लूज़ सोच लिए वो बचपन के चलचित्र को जीने एक बार फिर से बरसात में भीगने बाहर निकल आये। 

कुछ क्षण बाद ही आँखों और शरीर की जलन यादों पर हावी हुयी और पीछे से बेटे की आवाज़ आई - "पिता जी! सीजन की पहली बारिश है। सल्फर-वल्फर होगा पानी में, एसिड रेन है, अंदर आ जाइए। देखो जलन से आँखों में पानी आ रहा है आपकी।"

 ...पर विधिचंद की आँखों में पानी किसी और वजह से था। 

समाप्त!

#mohitness #mohit_trendster #freelance_talents #trendybaba

Sunday, November 22, 2015

भ्रम की परत - मोहित ट्रेंडस्टर

किस्मत का साथ ना देना तो अक्सर सुना है पर किस्मत का सूद समेत हिसाब वसूलना कम ही देखने को मिलता है। अवनीश मोहन की आध्यात्म, धर्म, योग व् आयुर्वेद में रूचि थी पर नौकरीपेशा होने के कारण इनमे कम समय दे पाता था। किसी विषय में रूचि होने से आप स्वतः अपने जाननेवालो में उस विषय के अंधों में काणे राजा बन जाते है। विषय के अंधो से वर्षो तक लगातार मिलती तारीफ़ से ऐसे काणे स्वयं को महाज्ञानी-स्कॉलर समझने का भ्रम पाल लेते है। धीरे-धीरे अवनीश में ये अहंकार विकराल रूप धर चुका था। अब अपनी रूचि से बाहर की बातों में भी वो घुसपैठ कर देता और अपनी बातें, निष्कर्ष सामने वाले पर बड़े आक्रामक अंदाज़ में थोपता था। अपनी बात काटे जाने पर तो वो आग उगलता ड्रैगन बन जाता। कभी कबार सब निष्फल होने पर अपना पक्ष ऊपर रखने के लिए उसका आखरी दांव होता कि "अभी बच्चे/नादान हो! मुझे 23 वर्ष का अनुभव है फलाना फील्ड का..."

उनकी यह स्वघोषित ख्याति स्थानीय चैनल में पहुँची और एक विदेशी अनुसंधानकर्ता से योग व आयुर्वेद पर चर्चा हेतु उन्हें आमंत्रित किया गया। निमंत्रण के बाद फूल के डायनासोर हुए अवनीश द्वारा कब चर्चा को बहस में बदल दिया गया पता ही नहीं चला। विदेशी स्कॉलर ने उनकी अनेक धारणाएं, भ्रम गलत साबित किये और उनके ज्ञान को सुपरफिशियल (सतही) करार दिया। इतनी कॉम्प्रीहेंसिव हार के बाद आदतानुसार अवनीश के मुँह से जादुई शब्द निकले - "मुझे 23 साल का अनुभव है ...", सामने बैठे स्कॉलर ने हँसते हुए कहा - "वर्षो में अनुभव को नापा नहीं जा सकता, फिर भी मुझे 23 दुनी 46 वर्षो का अनुभव है इन विषयों के अध्यन्न, अनुसंधान का।"

जीवन की सबसे बड़ी हार और धूलधूसरित अहंकार के साथ दुखी मन से अवनीश घर को चले और रास्ते में खुद को ढाँढस बंधाया कि इंग्लिश प्रोग्राम ज़्यादा लोग नहीं देखेंगे और वह अपने सर्किल के अंधों में काणे राजा बने रहेंगे।

समाप्त!

#mohitness #mohit_trendster #freelance_talents

Monday, November 16, 2015

#Update


मेरी नयी बाल कहानी और लेख बागेश्वरी पत्रिका के नवंबर 2015 अंक में प्रकाशित। #मोहितपन #मोहित_ज़हन #mohitness #mohit_trendster #Bageshwari

Sunday, October 25, 2015

किसका कठिन काम (लघुकथा) - मोहित शर्मा (ज़हन)


कल कंपनी की क्वार्टर क्लोजिंग होने के कारण संदीप, राघव और प्रखर को देर रात तक रुक कर काम और खाते निपटाने के आदेश मिले थे। त्यौहार की लगातार छुट्टियों के तुरंत बाद क्लोजिंग उनके शिथिल शरीरों और दिमागों को अल्सर की तरह दर्द दे रही थी। दफ्तर, बॉस, फाइल्स, लैपटॉप, बांग्लादेशी प्रवासी, केंद्र सरकार, ससुर-साले-पडोसी सबको जी भर कोसते हुए, मन मसोस कर तीनो सहकर्मी काम पर लगे। आधी रात के बाद तक काम पूरा कर तीनों घर जाने से पहले ऑफिस के पास चाय की दुकान पर रुके। 

राघव ने थकी आवाज़ में कहा - “तीन चाय और बंद-मक्खन।”

चाय वाले के बारह वर्षीय साहबज़ादे बाहर आये - “अभी बापू लेट गए, कल आना।”

“अच्छा अब ऐसे लोग भी अकड़ दिखाएंगे हमें।” प्रखर की गुस्से भरी हुंकार निकली। 

राघव की थकान को उसके अहं ने दबाया - “नहीं आना कल से यहाँ, ना किसी ऑफिस वाले को आने देंगे। सर पे चढ़ा लो तो औकात ही भूल जाते है लोग।”

संदीप ने भी अपना मतदान किया - “ भक  @#$%^!  उठा अपने बाप को। चरसी कहीं के, लोट जायेंगे जब मन करे। कभी इतनी मेहनत, ओवरटाइम करना पड़े तब पता चले।”

अँधेरे की आड़ में चाय वाले के पडोसी रिक्शाचालक ने कहा - “बाबूजी, गरीब पर दया करो!  आपके ऑफिस में ओवरटाइम महीने-दो महीने में होता है, उसके ऑफिस में तो रोज़ ओवरटाइम है।”

“छोटे” मुंह से निकली बड़ी बात को समझने में कुछ क्षण लगे संदीप, प्रखर और राघव को पर डेढ़ गरीबों पर तीन भोकाली युवको का जनमत हावी हुआ और खुद को सही घोषित करते हुए, गालियां देते हुए तीनो सहकर्मियों ने प्रस्थान किया।  

- मोहित शर्मा ज़हन 

#mohit_trendster #trendybaba #mohitness

P.S. Picture: I still play with toys, sketches....

Friday, September 4, 2015

सबकी अनैतिक बढ़त - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


अंतर्राष्ट्रीय साइकिल रेस के लिए चुना गया नेचुरल कोर्स शिव के लिए नया नहीं था। आखिर यही वह रास्ता था जहाँ वो वर्षो से प्रतिदिन अभ्यास करता था। उसके मित्रों और जानने वालो को पूरा विश्वास था कि यह रेस जीतकर शिव अंतर्राष्ट्रीय सितारा बन जाएगा। कॉलेज में कुछ हफ्ते पहले ही उसको यह दर्जा मिल गया था। शिव के कोच राजीव मेहरा मानकर बैठे थे कि अगर उस दिन कुछ ऊँच नीच हुयी, तब भी शिव शुरुआती कुछ रेसर्स में आकर बड़ी इनामी राशि अर्जित कर लेगा। स्थानीय कंपनियों में यह बात फैली तो उससे कुछ स्पोंसर्स जुड़ गये। 

रेस का दिन आया और रेस शुरू हुयी। पहले चरण में शिव काफी पीछे रहा, लोगो ने माना कि शायद वह अपनी ऊर्जा बचा रहा है या यह उसकी कोई रणनीति  है। पर रेस ख़त्म होने पर कुशल साइकिलिस्ट शिव औसत 17वें स्थान पर आया। स्थानीय लोगो और उसके करीबियों में अविश्वास और रोष था। जो रेस शुरू होने से पहले लाइमलाईट लेने में सबसे आगे थे, वही कोच और स्पोंसर्स रेस के बाद ताने देने वालो में सबसे आगे थे। जबकि एक शून्य में खोया शिव प्रतियोगिता की घोषणा के दिन से ही अलग उधेड़बुन में था। 

माहौल शांत होने के बाद एक शाम अपने मित्र सुदीप्तो के सामने उसने अपना दिल खोला। 

शिव - "मैंने खुद को बहुत समझाया पर मन को समझा नहीं पाया। मुझे लगा कि एक रास्ता जिसके हर मोड़, उंच-नीच यहाँ तक कि हवाओं की दिशा तक से मैं इतना करीब से परिचित हूँ पर मेरा जीतना अनैतिक होगा, एक चीटिंग होगी बाकी साइकिलिस्टस के साथ। धीरे-धीरे यह बातें मेरे दिमाग पर इतनी हावी हों गयी कि रेस के दिन वो बोझ मेरे पैरों, मेरे शरीर पर महसूस होने लगा और परिणाम तुम जानते ही हो।"

सुदीप्तो - "भाई, पहली बात तो ये कि दिमाग बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी मामले में बिलकुल परफेक्ट और कहीं-कहीं बिलकुल फ़िर जाता है। तो यह जो तुम्हारे साथ हुआ ये किसी के साथ भी हो सकता था। किसी बात में जब हमे सीधा लाभ मिलता है और हम किसी भी रूप में प्रतिस्पर्धा का हिस्सा होतें है तो कभी-कभी अपराधबोध लगता है कि हमे मिली यह बढ़त तो गलत है। पर इस बढ़त को एक मौके की तरह देखो जिसे पाकर तुम अपने और अपने आस-पास के लोगो के लिए एक बेहतर कल सुनिश्चित कर सकते हो। सोचो अगर यह रेस तुम जीतते तो अपने साथ-साथ कई लोगो का जीवन बदल देते और क्या पता आगे इस पूरे कस्बे की तस्वीर बदल देते। जहाँ तक अनैतिक बढ़त या चीटिंग की बात है वह तो तुम अब भी कर रहे हो, बल्कि हम सब करते है।"

शिव - "भला वो कैसे?"

सुदीप्तो - "तुम्हारे साधन-संपन्न माता-पिता है, क्या यह उन लोगो के साथ चीटिंग नहीं जो बचपन में ही अनाथ हो गए या जो किसी स्थिति के कारण गरीब है? तुम 6 फुट और एथलेटिक बॉडी वाले इंसान हों, क्या यह उन लोगो पर अनैतिक प्राकृतिक बढ़त नहीं जो अपाहिज है? तुम्हारे क्षेत्र में शान्ति है, क्या यह देश और दुनिया के उन लोगो पर बढ़त नहीं जिन्हे युद्ध के साये में जीवन काटना पड़ता है?"

शिव - "इस तरह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।"

सुदीप्तो - "इस तरह सोचोगे तो कभी जीवन में कोई मौका भुना नहीं पाओगे। ऐसे एंगल से सब सोचने लगे तो दुनिया के सारे काम उलट-पुलट जायेंगे। हाँ, हमे कुछ बातों में दूसरो पर प्राकृतिक या अन्य बढ़त हासिल है पर कुछ बातों में दूसरो को लाभ है। पते की बात यह है कि हम स्वयं को बेहतर बनाने में और अपने काम को अच्छे ढंग से करने पर ध्यान दें, अब अगली रेस कि तैयारी करो। गुड लक!"

समाप्त!

- मोहित शर्मा (ज़हन)

#mohitness #freelancetalents #trendster #freelance_talents #trendybaba

Tuesday, August 25, 2015

श्रीमान सुविधानुसार - मोहित शर्मा (ट्रेंडस्टर) #laghukatha


श्रीमान सुविधानुसार...वैसे तो आमजन की तरह ही हर बात में अपनी सुविधा देखते थे पर दूसरो को शॉर्टकट मारते या कुछ गलत करते हुए देख, दुख और घृणा से बड़े कायदे में सर हिलाते या आपत्ति जताते थे। हाँ, स्वयं वैसा करने पर एक बार भी खुद को नहीं रोकते और पकडे जाने पर अनेक बहाने तैयार रखते। घर पर शनिवार के दिन प्याज जैसे तामसिक पदार्थ के भूलवश खाने में आ जाने पर श्रीमती जी को कानफाडू डेसीबल्स में डांट पिलाई। रोज़मर्रा में ऐसी माइक्रोस्कोपिक गलतियां कुत्ते की चपलता से ढूंढकर बिना वजह क्लेश करने में पेशेवर थे श्री सुविधानुसार जी। चाहे वो कुछ ना बोलें, अपने किसी काम  व्यस्त हों या सो रहे हो पर उनके घर में होने से श्रीमती जी का मंन परेशान ही रहता था कि ना जाने अब कौन सी बात पकड़ लें उनके पति। 

ऑफिस के मित्रों संग श्रीमान गोलगप्पे खाने आये और जैसे बड़े-बुज़ुर्ग कहते है यहाँ किये गलत काम की सज़ा यहीं मिलती है। जो पहला आलू-प्याज-मसालों से भरा पानी बताशा स्वाद की लपलपाहट में श्रीमान जी ने हपक के चाबा, लाखो में एक गोलगप्पे की अतिसख्त सूजी की पापड़ी इनके तालु में ऐसे कोण पर घुसी की खून के स्वाद से भर गया इनका मुहँ। रात में इस घाव को भरने के लिए हल्दी का दूध पीने के लिए एक गिलास उठाते वक़्त वो रैक में काफी पीछे रखे गिलास पर लगी ज़रा सी बर्तन मांझने की साबुन पर श्रीमती जी को ऊँचे स्वर में कोसने लगे। फिर सुविधानुसार झूठा गिलास ज़रा सा उचक कर सिंक में रखने के बजाये रैक में ही रख दिया। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) 
#mohitness #mohit_trendster #trendybaba

Friday, August 7, 2015

Desh Maange Mujhe (Kavya Comics Advert)

*New Kavya Comics* "Desh Maange Mujhe" Follow-Like Red Streak Publications for more updates!
"Hello people,
We are going to feature a short poetic comic on our page. This is an online comic and will be free and available for all.You can read it by going on our Fb page.
Kudos to immensly talented Mohit Sharma and his co-artists for developing this unique style of comic book art.
Here we go with the first glimpse and look of "DESH MAANGE MUJHE"
The whole comic will be shared tomorrow"
 — with Prince Ayush and Mohit Sharma.

एक क़र्ज़ मेरे ऊपर जो बोलता नहीं, सूखी है जिसकी आँखें मुंह खोलता नहीं। 
आईने के उस पार से जो झांकता परे, खुद से किसी गिरह को पर खोलता नहीं। 
ख्वाबो में जबरन झरोखे बना लिये, पहली दफा देखी बेशर्म पर्दानशीं। 
दुनिया-जहान की बातों को तरजीह मिल गयी, उन तमाम बातों में वतन का नामोनिशां नहीं। 
अपनी ही कश्मकश में ज़िन्दगी गुज़ार दी, मुल्क की शिकन को कोई तोलता नहीं। 
इंसाफी मुजस्मा शर्मसार झुक गयी, किस्मत को कोसती मुझसे कहने लगी 
पाबंदी है यह कैसी...मैं कुछ देखती नहीं और तू कुछ बोलता नहीं !

Saturday, July 18, 2015

कुछ पल और गुज़ार ले... | मोहित शर्मा (ज़हन)

Artwork - Kinannti
रजनी का एक राष्ट्रीय चिकित्सीय प्रतियोगी परीक्षा का यह अंतिम अवसर था। रजनी की मेहनत घर में सबने देखी थी और डॉक्टर बनने का सपना भी लगनशील रजनी और उसके परिवार ने साथ देखा था। यह लगन ऐसी संक्रामक थी कि जीवन में कोई ध्येय ना लेकर चलने वाली, स्वभाव में विपरीत रजनी की जुड़वाँ बहन नव्या, सिर्फ उसके सहारे मेडिकल फील्ड लिए बैठी थी। यह रजनी की संगत का ही असर था जो पढाई में कमज़ोर नव्या ने अच्छे अंको से दसवी, बारहवीं पास की थी, यह नव्या भी इस राष्ट्रीय परीक्षा में अंतिम अवसर था। इंटरनेट पर परिणाम घोषित हुआ और एक बार फिर से रजनी बहुत कम अंतर से असफल हुयी। रजनी का जैसे पूरा संसार ही अंधकारमय हो गया। जब तक कोई कुछ समझाता, समझता उस से पहले ही रजनी ने आत्महत्या कर ली। 

नव्या को पहले ही पता था कि वह सफल नहीं हो पाएगी और परिणाम ने उसके अंदेशे पर मोहर लगा दी पर खुद से ज़्यादा दुख नव्या को अपनी मेहनती बहन रजनी के लिए था। अब उसे लगा कि काश उसे थोड़ा समय मिल पाता अपनी बहन को समझाने का। माता-पिता अविश्वास से एकटक कहीं देखकर अपनी कल्पनाओ को सच्चाई पर हावी करने की हारी हुयी कोशिश कर रहे थे। कुछ समय बाद अपने परिवार के लिए नव्या ने स्वयं को संभाला और क्लीनिकल रिसर्च में 8 महीनो का कोर्स कर उसे अच्छे वेतन पर एक विदेशी कंपनी में नौकरी मिली। नव्या को पता था कि अगर उसकी जगह उसकी बहन होती तो अपने ज्ञान और मेहनत के दम पर उस से अच्छे स्थान पर होती, उस स्थान पर जो  उसे उस प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद भी ना मिलता। कुछ समस्याएँ जो कभी जीवन को चारो और से घेरे ग्रहण लगाये सी प्रतीत होती है, जिनके कारण सुखद भविष्य की कल्पना असंभव लगती है, चंद महीनो बाद ऐसी समस्या का अस्तित्व तक नहीं रहता। थोड़ा और समय बीत जाने के बाद  तो दिमाग पर ज़ोर डालना पड़ता है कि ऐसी कोई दिक्कत थी भी जीवन में। नव्या अक्सर सपने में रजनी को समझाते हुए नम आँखें लिए जाग जाती है - "बहन! बस ये थोड़े लम्हें काट ले, जो इतना सहा...वो दर्द सहकर बस कुछ पल और गुज़ार ले....सवेरा होने को है..."
 समाप्त! 
- मोहित शर्मा (ज़हन) 
#mohitness #mohit_trendster #trendybaba

Thursday, July 16, 2015

भूरा हीरो बनाम ग्रीक गॉड - मोहित शर्मा (ज़हन)

उम्र बढ़ने के साथ हम जीवन के विभिन्न पहलुओं में सामाजिक ढाँचे के अनुसार ढलते है और कभी-कभी ढाले जाते है। जैसे किसी देश में अगर मनोरंजन के किसी साधन या स्रोत पर पाबंदी है या प्रोत्साहन है वहाँ जनता की पसंद-टेस्ट उस अनुसार ढल जायेगी, यहाँ तक कि सामाजिक परिदृश्य को देखने में भी वैसा ही चश्मा पहना जाने लगेगा। दुनिया भर के मनोरंजन स्रोत देखने पर आप पाएंगे कि हर जगह कितना दूषितवर्गीकरण व्याप्त है साथ ही पश्चिमी देशो के गोरे वर्ण के लोगो को इतना अधिक इस तरह प्रोजेक्ट किया जाता है कि दुनिया में मानवजाति के वह सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। धीरे-धीरे समय के साथ हम बाकी किस्म के लोगो में भी वो मनोरंजन के साधन देखते-देखते यह बात और भावना घर कर जाती है। एक निश्चित सीमा और प्रारूप (format) के आदि हो जाने के कारण अगर उस से अलग या नया कुछ होता है तो कई लोग उसे सिरे से नकार देते है।

बाहुबली मेरे कुछ जानने वालो को सिर्फ इसलिए पसंद नहीं आई क्योकि ऐसे एक्शन और स्टोरीलाइन में वो गोरे रंग के ग्रीक गॉड मॉडल जैसे हीरोज़ को देखते आये है और यह दक्षिण भारतीय नायक प्रभास उन्हें जमा नहीं। यह नायक उन्हें किसी बॉलीवुड या स्थानीय मसाला फॉर्मेट में ही जमता। ऐसा शायद इस फिल्म के समापन भाग में अभिनेत्री अनुष्का शेट्टी को भी सुनने को मिले जो तब युवा अवस्था के किरदार में दिखेंगी। क्या इतना कड़ा है यह फॉर्मेट की आदत पड़ जाने का बंधन जो हम सौइयों अन्य बातों को भूलकर सिर्फ वर्ण या स्थान का रोना रोने बैठ जाएँ? मेहनत और प्रयोगो को सराहना सीखें क्योकि दुनिया के आगे बढ़ने में इन दोनों बातों का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी ने टोका कि यह तो लोमड़ी के अंगूर खट्टे वाली बात हो गयी, भारत में ऐसे लोग मिलेंगे ही नहीं जो फॉर्मेट में फिट बैठे तो उन्हें बता दूँ कि भारत आपकी सोच से कहीं अधिक विशाल है, रैंडम देश के 15 - 20 शहरों का दौरा करें आपको हर तरह के प्रारूप के अनेको लोग मिल जायेंगे।

एक सम्बंधित एक्सट्रीम उदाहरण और उसका परिणाम भी बताना चाहूंगा, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलग होने के पीछे भी यह भावना थी। वही भावना कि वह हमारे जैसे नहीं है तो हम में से एक कैसे होंगे? पाकिस्तानी नेतृत्व, भारत के दूसरी तरफ बसे अपने बंगाली भाग के नागरिको से दोयम दर्जे सा व्यवहार करता था (दोनों रीजन्स के विकास में बहुत अंतर था) और उनका मखौल सा उड़ाता था (regional, ethnic ego) जिस वजह से दोनों स्थानो में दरार बढ़ती चली गयी और बांग्लादेश अलग हुआ। अलग बातों, चीज़ों, लोगो के प्रति लचीला रवैया अपनाये, ज़रूरी नहीं कि अगर कोई प्रारूप अनदेखा है तो बेकार ही होगा।

- मोहित शर्मा (ज़हन)
#mohitness #trendster #mohit_trendster #bahubali #prabhas #india #hindi

Friday, May 8, 2015

पोएटिक पोस्ट : मेरी आज़ादी का रुआब - मोहित शर्मा (ज़हन)


नमस्ते! दुनियाभर में अनेको लोग अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी संस्था, प्रभावशाली व्यक्ति, विचारधारा, सामाजिक प्रणालियों की परछाई में अपना जीवन काट देते है। उनसे अधिक दुर्भाग्यशाली लोग ऐसे होते है जो इतने जागरूक ही नहीं हो पाते कि अपनी सोच बना पायें। स्थापित प्रणाली पर बिना सवाल उठाये भेड़चाल का हिस्सा बन अपना जीवन काट देते है। उन्ही परिस्थितियों में काफी कम संख्या में लोग गलत परन्तु प्रचलित बातों के खिलाफ आंदोलन करते है। शांत, संतुष्ट जनता का बड़ा बहुमत होने के कारण सरकारों एवम शासको के लिए ऐसे विद्रोहों, आंदोलनों को कुचलना आसान बन जाता है।

अक्सर ऐसी कई आहुतियों की लपट हम तक पहुँच नहीं पाती। जैसे सूखी लकड़ियों और घी-कपूर में प्रज्वलित अग्नि में हवन सामग्री स्वाहा हो जाती है, वैसे ही शायद इस संघर्ष  का महत्त्व इन इकाई बलिदानो में साफ़ ना दिख पाये पर लगातार मंत्रो के बाद पड़ रही हवन सामग्री अग्नि की प्रचंडता समाप्त कर देती है, ठीक  वैसे ही लगातार छोटे-छोटे संघर्षों की बूँदें एक सैलाब बनकर भव्य शासको, शक्तिशाली विचारधारों को बहा ले जाती है। जनता को पूरे न्याय की ना जानकारी होती है और ना ही उम्मीद पर समस्या तब आती है जब बूँद-बूँद के लिए करोडो, अरबों को घिसटते हुए जीवन व्यतीत करना पड़ता है।  हर सक्षम नागरिक कि नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि असल और ढोंग के संघर्षों में फर्क करते हुए अपने कम भाग्यशाली देशवासियों की मदद में योगदान दे, प्रयासरत रहे। इस काव्य कॉमिक की प्रेरणा मुझे तिब्बत संघर्ष में बरसो से खुद को जलाकर, अपनी बलि दे रहे प्रदर्शनकारियों से मिली। 

यह यश ठाकुर ( हरीश अथर्व) जी कि पहली कॉमिक है जो काफी समय से अटकी हुयी थी, आखिरकार उनकी मेहनत सबके सामने है जिसके लिए उन्हें बहुत बधाई! हालाँकि, इस बीच उनकी कला में काफी सुधार आया है। पाठको और फेनिल शेरडीवाला जी के सुझावों, अवलोकन अनुसार आगे बेहतर काम आप सभी के सामने होगा। 
आपका 
मोहित शर्मा (ज़हन) 

Thursday, April 23, 2015

New Kavya Comic


Meri Aazadi ka Ruab exclusively at Fenil Comics website and social media pages. by yours truly, Yash (Harish Atharv) Thakur, Soumendra Majumder, Ajay Thapa and Manabendra Majumder.

Wednesday, April 8, 2015

लघुकथा - दहेज़ डील (मोहित शर्मा ज़हन)

लघु कथा - "दहेज़ डील" (from 'Bonsai Kathayen' collection) 

कसबे का लड़का लग गया मोबाईल टावर लगाने और उसकी मरम्मत करने वाली कंपनी मे। तनख्वाह भी अच्छी और घर से भी ठीक-ठाक। कसबे कि जवान लडकियाँ (जो उसकी जाति की थी) उनके माँ-बाप के लिए वो लड़का सोने की खान था। ऐसे ही एक आशावान माँ-बाप अपना भाग्य आजमाने लड़के के घर पहुँचे।

कसबे भर मे लगातार मिल रहे मुफ्त के सम्मान से लड़के के परिवार के भाव बढ़ गए थे।

लड़के की माँ - "हम्म ...लड़की तो सुन्दर है पर दहेज़ का क्या रहेगा?"

लड़की के पिता - " ....जी! बारहवी के बाद कम्पूटर कोरस भी किया है, ढाई हज़ार कमा रही है स्कूल मे। सारे काम कर लेती है। वो शादी अच्छे से करेंगे ...और .."

लड़के के पिता - " ....हाँ जी! पर दहेज़ का भी तो बताइए ..."

लड़की की माँ - "जी ...देने को तो ज्यादा कुछ नहीं है. ..पर .."

लड़के की माँ -" फिर तो जी मुश्किल है ..."

लड़की के पिता - "वकील साहब स्टेशन के पास ज़मीन है थोड़ी और थोड़े घर के पास कुछ खेत है।"

लड़के के माता-पिता ज़मीन सुनकर खुश हो गए।

"तो आप ज़मीन दोगे बेटी के साथ ...."

लड़की के पिता - "नहीं जी, आप बेटे जी से कह कर 2-3 टावर लगवा दो मोबाइल वाले हमारी ज़मीन और खेतो मे। उनके जो हर महीने 20-22 हज़ार आयेंगे वो आप लोगो के ..."

- मोहित शर्मा (ज़हन) ‪#‎mohitness‬ ‪#‎mohit_trendster‬

Wednesday, April 1, 2015

सपनो की एक्सपायरी डेट - मोहित शर्मा (ज़हन)


अपने सपनो के लिए जगदोजहद, मेहनत करते लोगो को देखना प्रेरणादायक होता है। एक ऐसा आकर्षण जिसकी वजह से हम फिल्मो, टीवी सीरियल्स से बंधे रहते है, उनके किरदारों में अपने जीवन को देखते है, ऐसा आकर्षण जिसके कारण कठिन समय में हम खुद को दिलासा देते है कि यह सब झेलने के बाद, यह वक़्त गुजरने के बाद हमे अपना सपना मिल जायेगा या उस से दूरी और कम हो जायेगी। कुछ ख्वाबो का महत्व इतना होता है कि उनके पूरे या ना पूरे होने पर जीवन की दिशा बदल जाती है, जबकि कुछ सपने बस किसी तरह अपनी जगह आपके ज़हन में बना लेते है - बाहर से देखने पर यह सपने बचकाने लगते है पर फिर भी अक्सर यह आपको परेशान करते है। 

व्यक्ति की आयु, परिस्थिति अनुसार सपने बदलते है, नए सपने इतने बड़े हो जाते है जो किसी उम्र के अधूरे-पुराने सपनो के आड़े आकर धुँधला कर देते है। मैंने कहीं सुना था कि सपनो को साकार करने का कोई समय नहीं होता जब साधन, भाग्य साथ हों तब उन्हें पूरा कर उनका आनंद लीजिए। पर जीवन तमाम चुनौतियाँ, उबड़-खाबड़ रास्ते लेकर आता है जिसके चलते निरंतर कुछ न कुछ सोचता दिमाग उन बिन्दुओं से काफी आगे बढ़ चुका होता है।  

अपना ही उदाहरण देता हूँ। मुझे बचपन से ही प्लेन में बैठने बड़ी इच्छा थी पर समस्या यह थी कि उस समय लगभग सभी करीबी रिश्तेदार दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के सीमावर्ती शहरों में रहते थे जहाँ 100 से 600 किलोमीटर्स के दायरे में होने के कारण अगर कोई आपात्कालीन स्थिति ना हो तो वैसे शादी आदि समाहरोह में पहुँचने के लिए साधनो में एरोप्लेन से पहले वरीयता ट्रैन, बसों को मिलती है। ऊपर से मध्यमवर्गीय परिवार तो 90 के दशक में टीवी पर ही प्लेन देखकर खुश हो लेता था। (अब घरेलु यात्रा हवाई टिकटों के दामो में काफी कमी आयी है खासकर पहले बुक करने पर, कभी-कभी तो बहुत लम्बी दूरी की हवाई यात्रा ट्रैन यात्रा से सस्ती पड़ती है) तो स्थिति यह रही कि बचपन से किशोरावस्था आई, जिसमे हवाई यात्रा की प्रबल इच्छा बनी रही पर कभी ऐसा मौका नहीं बना। वर्तमान में जहाँ सक्रीय हूँ यानी मेरठ, दिल्ली इनकी दूरी 70-75 किलोमीटर्स है और अब तक प्लेन में नहीं "घूमा"। 

पर अब वो सपना मर गया है, इच्छा कहीं गुम हो गयी जैसे उसकी एक्सपायरी डेट निकल गयी हो। किसी समय एक बच्चे की जो सबसे बड़ी विश होती थी जिसके लिए वो भगवान जी से प्रार्थना करता था, आज उसके पूरे होने ना होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्टा चिढ होती है, बेवजह गुस्सा आता है इस ख्वाईश के कभी याद आने पर। अब अगर कभी हवाईजहाज़ में बैठने का अवसर मिलेगा तो मन किसी प्रौढ़ उधेड़बुन में लगा होगा, रूखी आँखों में उस बच्चे या किशोर की चंचलता नहीं होगी जो अक्सर सपनो में प्लेन में बैठकर दुनियाभर की सैर कर आता था। 

कुछ सपनो का पूरा होना आपके हाथ में होता है और कुछ का भाग्य पर निर्भर। अपने बस में जो बातें हो उन्हें प्रगाढ़ता से पूरा करें ताकि इच्छाएँ मरने या बदलने से पहले....सपनो की एक्सपायरी डेट से पहले वो पूरे हो जायें।  :) 

 - मोहित शर्मा (ज़हन)
#mohitness #mohit_trendster #trendy_baba

Wednesday, March 4, 2015

झूठ की नोक पर बंदी भारत - मोहित शर्मा (ज़हन)


Note - वैसे तो आर्टिकल में मीडिया की आलोचना है पर आशय मुख्यधारा, बहुसंख्य मीडिया से है। इस क्षेत्र में भी हर जगह की तरह अच्छे, ईमानदार लोग, संस्थायें भी है। 

क्या भारत दुनिया के सबसे अच्छे राष्ट्रों में है? नहीं! क्या भारत दुनिया के सबसे बुरे देशो में है? नहीं! भारत लगभग हर पक्ष में कहीं बीच में है। तकनीक, पर्यटन, विकास, खेल, अपराध सब में। फिर कैसे हमे हिंसक अपराधो, महिला के विरुद्ध अपराधों, घोटालो जैसे मुद्दों में सबसे शीर्ष पर आ जाते है? कैसे पूरे विश्व की कैपिटल बन जाते है इन आपराधिक, अनैतिक मामलो में? मैं मानता हूँ कि अपराध से, बुराई से लड़ाई तेज़ होनी चाहिए और भारत में बहुत से सुधारों की आवश्यकता है पर हर पक्ष में योजनाबद्ध तरीके से, "कोसनाबद्ध" तरीके से नहीं। 

भारतीय मीडिया के बहुसंख्य हिस्से में एक ट्रेंड चला है पिछले कुछ वर्षो से जो मुझे चिंतित कर रहा है। हैरतअंगेज, होश उड़ा देने वाली, घृणित कर देने वाली ख़बरों को वरीयता 
देना। साथ ही देश और उस से जुडी बातों को कोसना। बाकी नियमित स्तर पर इतने विशाल देश से आयी सामान्य-अच्छी ख़बरें, उपलब्धियाँ इन "चौंका" देने वाले खुलासों में कहीं खो जाती है। परेशानी यहीं ख़त्म नहीं होती अक्सर घटनाओं से अधिक कवरेज बड़े लोगों के बयानों को मिलती है की फलाना ने फलाना बोलकर फलाना मानसिकता दर्शायी। देश में विचारों को व्यक्त करने की आज़ादी है और अगर वो बयान किसी के प्रति हिंसा नहीं फैला रहे (जो अधिकतर होता है) तो आप क्यों ठेकेदार बन रहे हो किसी के एक बयान के बल पर उसका पूरा व्यक्तित्व नापने वाले? आप जो खुद कॉर्पोरेट्स आदि निजी हितों से प्रायोजित ख़बरें दिखाते फिरते हो। वह भी एक इंसान है और कम से कम असली इंसान की हर मामले में नपी-तुली राय हो ही नहीं सकती। 

दूसरी बात जो मैं अक्सर दोहराता हूँ की लगभग 130 करोड़ के देश मे दशमलव प्रतिशत अपराध भी बाकी छोटे देशो के मुकाबले बड़े लगेंगे पर इसका मतलब यह नहीं की अपराधों के मामले में भारत पहले नंबर पर है। दुनिया के 200 कुछ देशों में अपराध दर में भारत कहीं बीच में है, 147 देशो के उपलब्ध डाटा में भारत का स्थान 72वां था, अगर सभी देशो से रिकार्ड्स आते तो भारत 100 की संख्या पार कर जाता, यानी भारत से अधिक अपराध दर वाले दर्जनो देश है। पर खबर पहले दिखाने का, सेन्शेसनलाइज़ करने का ऐसा भूत सवार है न्यूज़ चैनल्स, प्रिंट न्यूज़ मीडिया को कि ख़बरें वेरीफाई करना तो दूर, ख़बरें ईजाद तक कर दी जाती है। दिक्कत खबरें देने से नहीं है, दिक्कत है एक आपातकाल, मुसीबत का माहौल दिखाते रहने कि है। जिस से आम जन में पूर्वाग्रह बनने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक असर बैठता है, देश और लोगो के लिए हिकारत की भावना आती है की "मैं तो अच्छा/अच्छी हूँ, दुनिया बुरी है, और ऐसे लोग के साथ ऐसा ही होना चाहिए।" तो पहली बात देश, समाज उतना बुरा नहीं है जितना समय के साथ आपके मन में बैठा दिया गया है। हमारे विशालकाय देश का 2-3 प्रतिशत ही ऑस्ट्रेलिया की जनसँख्या से अधिक है, बाकी आप खुद समझदार है। तो अगली बार कोई संख्या देख कर पूरी जाँच कीजिये हल्ला काटने से पहले। 

अब इस एमरजेंसी के माहौल का पहला नुक्सान विदेशों में यह ट्रेंड कम है तो जब कोई देश खुद ही अपनी खिल्ली उड़ाए तो कंटेंट और वैरायटी के लिए यहाँ का "कोसना" वहाँ स्थानांतरित हो जाता है। तभी जिन देशो में भारत से ऊँची अपराध दर है वो तक हमारे ऊपर डॉक्यूमैंटरीज़, स्टोरीज, कार्टून्स, न्यूज़ रिपोर्ट्स दिखा कर अपनी जनता का ध्यान बँटाकर, अपनी सरकाओं की मदद करते है। 

दूसरा घाटा...कानून, संविधान, नीतियों के गलत बनने से होता है क्योकि समय के साथ लगातार ऐसी ख़बरों से गलत दबाव बनता है सिस्टम पर। फिर जल्दबाज़ी में गठित कानून, संवैधानिक बदलाव एक बड़े वर्ग को नुक्सान पहुँचाने लगते है। साथ ही वर्गों, स्थानो, लोगो के बीच पूर्वाग्रह, नकारात्मक वर्गीकरण बढ़ने लगता है I जिसमे वो अधपकी, अधूरी जानकारी के आधार पर फैसला सुनाकर पब्लिक ट्रायल से दबाव बनाते है। 

पर प्रोपोगंडा नहीं होगा, हल्ला नहीं होगा तो चैनल्स को दर्शक, विज्ञापन और स्पोंसर्स कैसे मिलेंगे? कागज़ पर चलने वाली या खानापूर्ति को स्टोर रूम में ऑफिस खोले हज़ारो स्वयंसेवी संस्थाओं को जनता, सरकार और विदेशी डोनेशन, ग्रांट्स कैसे मिलेंगी? विनती कुछ गलत होने पर हल्ला ना करने की नहीं है, बल्कि जितनी बात है उस स्तर का हल्ला करने की है। अपराध, अनैतिकता के खिलाफ आवाज़ और एक्शन दोनों ज़रूरी है पर कायदे में। अपने प्रतिद्वंदीयों को हराने की होड़ में देश की छवि तो धूमिल ना करें। मुझे गर्व है कि मैं समृद्ध विरासत वाले विविध देश भारत का नागरिक हूँ और सामान्य जीवन जीने वाले उन देशवासियों कि मेजोरिटी का हिस्सा हूँ जो खबरों के मामले में आपके मानको पर बोरिंग बैठते है, पर उनको दिखाये बिना भारत में त्राहि-त्राहि की तस्वीर दुनिया पर प्रोजेक्ट करना मेरे लिए किसी जघन्य अपराध से कम नहीं क्योकि क्योकि एक भारतीय होने पर गर्व की बात या भारत से जुडी कोई भी बात जिसमे अपराध का ज़िक्र ना हो सुनते ही बिना आगे कुछ सुने लोग हँसने लगते है या मुँह मोड़ लेते है। बाकी चीज़ों में तो पता नहीं पर देश को कोसने और हल्ला काटने में हम नंबर एक है। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) #mohitness #mohitsharma #mohit_trendster

Saturday, February 21, 2015

बदलते दौर में स्थाई सवाल! II लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


जैसा अपने बड़ो से सुना और जितना समझा उसमे एक बात गौर की, पहले संसाधनो-सुविधाओं की कमी थी पर जनता में धैर्य और दूसरो के लिए आदर था। एक  बुज़ुर्ग गाइड ने बताया कि पहले विदेशी पर्यटकों के लिए आम जन में सम्मान, आत्मीयता का भाव रहता था। बाहरी लोगो को अपनी संस्कृति दिखाने की ललक रहती थी। इसलिए हर टूरिस्ट मैन्युअल, डाक्यूमेंट्री आदि में यह ज़रूर बताया जाता था कि भारत का अनुभव लिए बिना घूमने का तो दूर ज़िन्दगी का अनुभव अधूरा है। विदेशी लोगो के कोतूहल का विषय यह भी रहता था कि किस तरह सादे जीवन में अधिकतर भारतीय इतनी सारी खुशियाँ ढूँढ लेतें है? 


आज के दौर की बात करें तो उन्होंने बताया कि जनसँख्या के मुद्दे के अलावा लोगो में वो आदर, आत्मीयता के भाव कहीं लुप्त हो गए है। सबको अपनी काबिलियत, हुनर से ज़्यादा पैसा चाहिए और विदेशी उनके लिए इंसान ना होकर चलते-फिरते नोटों की गड्डी बन गए है, लालच में अंधे हम सब, अपने देश से उनका यहाँ आने का आनंद, मुसीबत और सरदर्द में बदल देते है। ऐसा नहीं है की पहले ये सब नहीं होता था पर तब यह संख्या नज़रअंदाज़ करने लायक काफी कम होती थी। शायद इसी वजह से चुन्नू-मुन्नू द्वीप समूहों वाले देशो तक में भारत से ज़्यादा पर्यटक आते है। ऊपर से हमारे द्वारा अपनी संस्कृति का पूर्ण परित्याग कर देने से उन्हें यहाँ का जनमानस उनकी संस्कृति का दोयम दर्जे का घटिया प्रतिबिंब लगता है। अब आप यह कहें की समय के साथ बदलना चाहिए तो मैं सहमत हूँ पर यह बताइये क्यों कई हर मायने में विकसित देश अपनी भाषा, संस्कृति को महत्व देते है और फिर भी समय-समय पर नयी तकनीक, तरीके अपना लेते है? दोनों बातें साथ भी चल सकती है, मॉडर्न बनने की होड़ में अपनी पहचान की बलि क्यों देना, उसे हेय दृष्टि से क्यों देखना?  सुधार की कोशिश के बजाये सिर्फ कोसते ही क्यों रह जाना?
#mohit_trendster

Friday, February 13, 2015

ज़ोम्बी गुड़िया (Randomiya Web Comic)

"कौन हो बिटिया?" पूछें पनवाड़ी काका....
जाने कितनो को यूँ ही hobby में काटा, फिर ना मांगे कोई इंजेक्शन या टांका..
छोटा पैकिट, सड़ा धमाका ! :p
1 Minute...दाब लूँ होंटो में खैनी की पुड़िया,
हम हूँ अंकिल ज़ोम्बी गुड़िया !!" 
** लपर-लपर लप-लप ** 


- Klown Codie, Mohit Trendster
‪#‎zombie‬ ‪#‎art‬ ‪#‎mohitness‬ ‪#‎randomiya‬ ‪#‎mohit_trendster‬ ‪#‎klownc‬ ‪#‎trendster‬

Sunday, January 11, 2015

कॉमिक्स शास्त्र अगर होता तो... - मोहित ट्रेंडस्टर

अगर कॉमिक्स की भी स्कूली शिक्षा होती तो कुछ यूँ नज़ारे देखने को मिलते। 


*) - पेरेंट्स-टीचर मीटिंग 

अभिभावक 1 - लड़का तो पूरे दिन पढ़ता रहता है फिर नंबर क्यों नहीं आते इसके कॉमिक्स शास्त्र में ?
शिक्षक - जी, ध्यान सिर्फ तौसी, गमराज औऱ क्रुकबांड जैसे ग्रेडिंग सब्जेक्ट के कैरक्टर्स में रहता है नालायक का ! चाचा चौधरी, नागराज,  डोगा, अघोरी के पन्ने पलटना तो जैसे पाप है इसके लिए, तो आप ही बतायें, नंबर कहाँ से आएंगे इसके? 

अभिभावक 2 - आप यह बताईये गुप्ता जी कि जब जम्बू, फैंटम, प्रेत अंकल और काली विध्वा CBSE ने कोर्स से हटवा दिए पिछले साल तो आप लोग बच्चो से ज़बरदस्ती उनकी किताबें और मरकंडाइज़ क्यों खरीदवा रहें है? लूट मचा रखी है! ऊपर से तिलिस्म देव को आपने आधा चैप्टर दे रखा है और Marvel, DC 3 headings में निपटा दिए! मैं RTI फाइल करूँगा। 

---------------------------

*) - एक लड़की - आई लाइक नागपाशा बट उसमे फरसा वाला चार्म नहीं है।  
अनेक लड़की - Awwwwwww........

-------------------------------

*) - एग्जाम के बाद लड़को का ग्रुप पेपर डिस्कस करता हुआ। 

"यार टीचर पगला गये है। इंस्पेक्टर स्टील पर 15 नंबर का लोंग question दे दिया और चंडिका पर 2 नंबर का शार्ट, फिर कहते है मार्क्स कम क्यों रह गये...." 
"हाँ! तिरंगा की जीवनी पूछ ली। अब उसमे लिखने को है ही क्या? उस से ज़्यादा तो फूजो बाबा के एडवेंचर्स है।"

"अब तो आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ नागराज के आगे फिल इन थे ब्लैंक्स में क्या भरा?"
"पुराने चैप्टर्स मैंने नहीं देखे, अपने से राइम बना दी - 'अब तो आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ नागराज....शेक योर एज़ ! भाई शेक योर एज़ !' यार, इसके बाद यही राइम सही बैठ रही थी।"
"अरे उल्लू ऐसा थोड़े था, ये था - 'अब तो आ जाओ, आ जाओ, आ जाओ नागराज....हमको तेरी ही है एस....आई मीन आस, हमको तेरी ही है आस!"

---------------------------------

*) - एक लड़की - यार नयी कॉमिक में आई noticed बौना वामन की ऐब्स, एंड आई was लाइक OMG !
एक और लड़की - वो तो कुछ भी नहीं एक विंटेज एड में जादूगर शकूरा के किलर कट्स है with 8 पैक ऐब्स और जब वो मुंडी टिल्ट करके डायलॉग देता है, इट्स  जस्ट...जस्ट आई गो वीक इन माई नीज़ !
अनेक लड़की - Wowwwww....

- Mohit Trendy Baba