...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster
Monday, December 23, 2013
Saturday, November 16, 2013
Wednesday, November 13, 2013
Deadly Deal (Indi Horror Series) by Mohit Sharma
Wrote "Deadly Deal" (Horror) way back in 2006 & last year (2012) Kuldeep Babbar liked the idea so I wrote a 20 Page script on this story. He made that in record time within 3 weeks but then project got delayed due to other commitments & hurdles. Finally, another artist Atharv Thakur is giving the artworks final touch up. Coming this Decemeber!!!!
- Mohit Sharma (Trendy Baba / Trendster)
Tuesday, November 5, 2013
Rooh Ghulam-e-Hind Deewani (रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी) - Tribute Poetry
Dedicated to Kargil War Heroes! (1999)
16 October 2013
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी,
सजी दुलहन सी बने सयानी।
फसलों की बहार फिर कभी ....
गाँव के त्यौहार बाद में ...
मौसम और कुछ याद फिर कभी ....
ख्वाबो की उड़ान बाद में।
मांगती जो न दाना पानी,
जैसे राज़ी से इसकी चल जानी?
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
वाकिफ है सब अपने जुलेखा मिजाज़ से,
मकरूज़ रही दुनिया हमारे खलूस पर,
बस चंद सरफिरो को यह बात है समझानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
वक़्त की धूल ज़हन से झाड़,
शिवलिंग से क्यों लगे पहाड़?
बरसो शहादत का चढ़ा खुमार,
पीढ़ियों पर वतन का बंधा उधार,
काट ज़ालिम के शीश उतार।
बलि चढ़ा कर दे मनमानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
यहीं अज़ान यहीं कर कीर्तन,
यहीं दीवाली और मोहर्रम,
मोमिन है सब बात ये जानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
काफिर कौन बदले मायने,
किसी निज़ाम को दिख गए आईने।
दगाबाज़ जो थे ....चुनिन्दा कर दिये,
आड़ लिए ऊपर दहशत वाले ...कुछ दिनों मे परिंदा कर दिये।
ज़मीन की इज्ज़त लूटने आये बेगैरत ....
जुम्मे के पाक दिन ही शर्मिंदा हो गये।
बह चले हुकुम के दावे सारे ....जंग खायी बोफोर्स ....
छंट गया सुर्ख धुआं कब का....दब गया ज़ालिम शोर ....
रह गया वादी और दिलो में सिर्फ....Point 4875 से गूँजा "Yeh Dil Maange More!!"
ज़मी मुझे सुला ले माँ से आँचल में ....और जिया तो मालूम है ...
अपनी गिनती की साँसों में यादों की फांसे चुभ जानी ...
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
- Mohit Sharma (Trendster / Trendy Baba)
Sunday, October 13, 2013
Baali (Vijay Dashmi) Ad
** Baali (Aryan Cretions) Vijay Dshmi Promo **
Mr. Mahesh Nambiar
Baali (Vali) was king of Kishkindha, a son of Indra and the elder brother of Sugriva. He was killed by Rama, an Avatar of Vishnu. Vali was famous for the boon that he had received, according to which anyone who fought him in single-combat lost half his strength to Vali, thereby making Vali invulnerable to any enemy. Once Ravana called Vali for a fight when Vali was doing his regular Sandhyavandanam. He took Ravana in his tail and took him around all the world. Humbled, Ravana called for a truce [agreement to stop war tempararly]. It is said in the Ramayana that Vali was very brave and courageous. Before dawn he used to go from the Eastern coast of sea to the Western coast and from the Northern coast of the sea to the Southern coast to pay his homage to Surya - the sun-god. He was so brave and powerful that on his way to pay homage to Surya, he used to toss the mountain peaks upward and catch them as if they were play balls. Also after completing the tedious task of paying homage to the sun god in all the four directions, when he used to return to Kishkindha he does not feel any tiredness. Vali was the husband of Tara. As one myth goes, fourteen types of gems or treasures were produced from the churning of ocean. One gem is that various Apsaras (divine nymphs) were produced and Tara was an Apsara produced from the churning of ocean. Vali who was with the devas, helping them in the churning of ocean, took Tara and married her.
Vali was very courageous this can be understood from the fact that, when Tara tried to stop him and begged him to not to go to fight Sugriva, by saying that it is God (Rama) who is helping Sugriva and has come to Sugriva’s rescue; Vali replied to Tara that even if he is fighting against God he can’t ignore a challenge for a fight and remain quiet. He adds that even if the caller for the fight had been his own son Angada he would still go to fight.
Vali had been known as a good and pious vanara-king, but had been too outraged to heed his brother Sugriva after his brother had sealed the entrance to a cave in which Vali was fighting a rakshasa named Mayavi. Sugriva had mistaken the blood flowing out of the cave to be his brother's, blocked the entrance to the cave with a boulder and left for Kishkindha, assuming that his brother was dead. When Vali had emerged victorious over the rakshasa, he had found that the entrance to the cave was blocked. He journeyed back to kingdom to find Sugriva ruling in his place. Sugriva tried to explain the situation to Vali, but Vali, enraged, would not listen. Vali then nearly kills Sugriva, except that Sugriva was able to escape Vali's grasp. Sugriva barely escaped from the kingdom. When Vali chased Sugriva out of his kingdom, he also claimed Sugriva's main wife, Rumā. Sugriva fled into the forest where he eventually meets Rama and Lakshmana.
"रावण के वध से पूर्व भगवान राम ने बाली को मुक्ति दी थी इसलिए उस दृश्य के मृत्युलोक से दर्शन नहीं हुए। कहते है श्री राम और रावण एक ही राशी के थे फिर कर्मो ने विशाल अंतर कर दिया। त्रेता में जैसे रावण ने सारा पाप अपने सर ले लिया तभी कोई बाली के अंत पर उत्सव नहीं मनाता। परन्तु पाप तो तब भी विद्यमान था प्रजा के मन में बसा किसी अवसर की घात में ...जो भक्त जनता ने माता सीता पर लांछन लगा सिद्ध कर दिया। राम जी के तेज से पाप स्वछन्द कैसे रहता पर रावण की मुक्ति के बाद भी छदम पाप तो था। कहते तो यह भी है की मेरे भाई सुग्रीव की सूरत और कर्म मुझ जैसे थे। पर मेरे अंतरमन में कहीं सुप्तावस्था में छिपा पाप जाग गया और बाली की सुग्रीव से सभी समानताएँ मिट्टी हो गयी।
धर्म और नीरीह की रक्षा में अनैतिकता को अनैतिकता से काटने के लिए सभी विधाओं में निपुण भगवान् श्री कृष्ण का महाभारत में किये आचरण उदाहरण दिया जाता है, पर उस युग से पहले भगवान राम ने बाली को सामने ना आकर मुक्ति दी और पापी को अपने पुरुषोत्तम आचरण से हटकर समाप्त किया। मै धन्य हूँ जो श्री राम ने मुझे मुक्ति देकर उस युग का दूसरा रावण उदय होने से पहले ही अस्त कर दिया। तब ऐसा करने की आवश्यकता कम पड़ती थी पर अब जब हर ओर पाप की परत जमी है तब पाप से पाप को नष्ट करने फिर आया है बाली। मै उन श्री अवतारों के समान तो नहीं बन सकता पर उनका अनुसरण करूँगा जब तक भगवान, कल्कि अवतार लेकर स्वयं मुझे दोबारा मुक्ति देने नहीं आते।
जय श्री राम!"
कला - महेश नाम्बियार
संकल्पना - मोहित शर्मा
Friday, September 6, 2013
मेरे लिए आस्था, तुम्हारे लिए डर.....
मेरठ में घर के पास एक शांत स्थान है जहाँ आस-पास शिव जी-दुर्गा माता का एक मंदिर, शनि देव का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर और साईं बाबा की कुटी है। वहाँ सोमवार को शिव भक्तो का जमावड़ा रहता है, मंगल को बजरंग बलि महाराज के भक्तो का गुरूवार को साईं बाबा को मानने वालो की भीड़ रहती है और शनिवार को शनि देव और हनुमान जी के भक्तो की।
तो एक शनिवार मेरा एक नास्तिक दोस्त मेरे साथ था और हमे थोडा समय लग गया सड़क पर भक्तो की भीड़ से निकलने मे। दोस्त ने कहा की सब नौटंकी है, ये लोग आस्था या श्रद्धा से नहीं आते बल्कि डर से आते है की शनि देव सब भला करें इनका या शिव भगवान, बजरंग बलि इनके किये पापो से छुटकारा दे दें इनको। उसने मुझसे पूछा इस सबमे कोई भी सकारात्मक बात है या सब पाखण्ड है।
अब आजकल एक तो फेशन बन गया है भगवान की बेईज्ज़ती करना और खुद को नास्तिक बताना। उसको भगवान के बारे मे समझाना व्यर्थ था इसलिए मैंने इस भीड़-जमावड़े से जुडी सकारात्मक बात बताई उसको।
मैंने कहा यहाँ रास्ते मे दर्जनों गरीब परिवारों को ये भक्त लोग (चाहे भगवान के डर से या आस्था से) खाना, प्रसाद और पैसे देते है, जिस से इतने सारे गरीबों का जीवन चलता है सिर्फ यहाँ ही नहीं देश भर मे। उसने तुरंत कहा की ऐसा तो हफ्ते के 3-4 दिन ही रहता है बाकी के दिनों का क्या? अगर भक्ति करनी ही है तो उसके लिए कोई दिन या समय निश्चित करने से क्या फायदा? जब मन आये तब करो पूजा, भक्ति। इसपर गृह-नक्षत्रो की बात करता तो फिर वो प्रूफ मांगता इसलिए मैंने यहाँ भी उसी की जुबां मे बोलना ठीक समझा।
मैंने कहा तुम्हारी बात सही है बिना दिन-समय देखे भी भक्ति करने वाले बहुत से लोग है रही आम जनता की बात तो उनका यह डर या नियत समय पर किसी ख़ास देव की पूजा अर्चना करना भी इन गरीबों के हित मे है। कैसे? ये मानवीय सोच है उसका व्यवहार है ...जैसे अधिकतर बच्चे परीक्षा की तिथि आने पर ही पढना शुरू करते है, अगर कुछ नियत न हो तो दिमाग मनुष्य को दिलासा देता रहता है की अभी तो काफी समय है आराम करो। इसी तरह ज़्यादातर लोगो को अगर ये बताया जाए की रोज़ हर बड़े देव या अपने इष्ट देव-देवी की पूजा-आराधना करो तो दिनचर्या समझ कर वो इसको गंभीरता से नहीं लेंगे और जो हफ्ते मे 4 दिन ये गरीब सही से खा-पी लेते है वो भी अनियमित हो जाएगा, और सिर्फ बड़े त्योहारों तक सीमित होकर रह जाएगा। पर जब उनके इष्ट देव के लिए हफ्ते मे एक ख़ास दिन निश्चित होता है तो वो अपने देव को खुश करने के लिए वो सही से पूजा करने के अलावा दान पुण्य भी करते है जिस से इन गरीबो का और आस-पास पूजा से जुडी सामग्री बेचने वालो का भला करते है। कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ हफ्ते के सातो दिन मेला सा लगा रहता है और हर दिन किसी ख़ास भगवान् मे आस्था रखने वाली या तुम्हारी भाषा मे डरने वाली भीड़ इन गरीबो का, दुकानदारों का भला कर जाती है।
- मोहित शर्मा (ट्रेंडस्टर / ट्रेंडी बाबा)
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Saturday, August 31, 2013
Kalamkaar 2013 - International Story Competition Win
Namastey! Everyone. :) Won International Contest "Kalamkaar
2013" for my story "Naritva" organized by International Hindi Organization, Roobaru Duniya
Magazine (India), Prayas (Canada) for a nobel cause to promote-donate
anti-sex trafficking organization Apne Aap.
"अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता, रूबरू दुनिया कलमकार २०१३
विजेता :
प्रथम पुरस्कार : मोहित शर्मा, मेरठ (यूपी) - पुरस्कार राशी 5000 रूपए
द्वितीय पुरस्कार : ज्योतिर्मयी पंत, गुडगाँव (हरयाणा) - पुरस्कार राशी 3000 रूपए
तृतीय पुरस्कार : छत्रपाल वर्मा, अहमदाबाद (गुजरात) - पुरस्कार राशी 2000 रुपये
यह प्रतियोगिता एक चेरिटी इवेंट था जिसमें इस प्रतियोगिता में जमा राशी के द्वारा रूबरू दुनिया की तरफ से "अपने आप" संस्था दिल्ली को 5000 रुपये का डोनेशन दिया जाता है, यह संस्था ह्यूमन सेक्स ट्रेफिकिंग के खिलाफ कार्यरत है !
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई, व सभी लेखकों और विजेताओं को रूबरू दुनिया से जुड़े रहने के लिए धन्यवाद !!"
http://roobaruduniya.com/?page_id=937
विजेता :
प्रथम पुरस्कार : मोहित शर्मा, मेरठ (यूपी) - पुरस्कार राशी 5000 रूपए
द्वितीय पुरस्कार : ज्योतिर्मयी पंत, गुडगाँव (हरयाणा) - पुरस्कार राशी 3000 रूपए
तृतीय पुरस्कार : छत्रपाल वर्मा, अहमदाबाद (गुजरात) - पुरस्कार राशी 2000 रुपये
यह प्रतियोगिता एक चेरिटी इवेंट था जिसमें इस प्रतियोगिता में जमा राशी के द्वारा रूबरू दुनिया की तरफ से "अपने आप" संस्था दिल्ली को 5000 रुपये का डोनेशन दिया जाता है, यह संस्था ह्यूमन सेक्स ट्रेफिकिंग के खिलाफ कार्यरत है !
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई, व सभी लेखकों और विजेताओं को रूबरू दुनिया से जुड़े रहने के लिए धन्यवाद !!"
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- Mohit
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Meerut, Uttar Pradesh, India
Saturday, August 17, 2013
Difference between Copied Product & Unique Product
As per few of my friends "Everything created these days is
copied...everyone copies." Such statements are insult to those people
who work their hearts out in creative fields. Now please consider few
examples.
*) - If everyone copies then by that logic Music Directors like Pritam or Anu Malik or Bappi Lahiri should be as great as AR Rahman.....NO!! because he and his team work hard to find unique permutations and combinations instead of lifting music from around the world.
*) - *Hypothetical* You want to make a Political Thriller movie. Now, mainstream Bollywood chooses copied themes, story plots. Political movies similar to USA or big European nations scene are done to death all over the word ...so a lot of stats on the Box Office Response, Critics, Budget etc are already there...for me adapting all that in your country's backdrop is no big deal. Now, many Hollywood as well as independent movie makers take risk and cover Historical Fiction stories on roads less (or not at all) traveled...like Political scenes of not so mainstream countries like Fiji, Moldova..(this is new, this is trying unique permutations-combinations)...if these risks are commercially successful then shameless Bollywood camps, big production houses copy the theme or even scene-by-scene copy the movie (this is copy, no excuse). Artist-Author Mr. Sumit Kumar while reviewing a story in Freelance Talents Championship wrote - "World is a complex place, there are so many stories which have never been told. Holocaust has been done to death - something similar could be the mass killings in Mizoram in 60's. You could write about that."
*) - I agree that volume of creative work, art created over thousands of years is humongous but still there are countless unused permutations-combinations...I guess the commercial barriers restrict people to try something new, unique and they chose 'tried and tested' safe paths over an over again...maybe thats why often a 2 minute trailer can remind 4-5 movies or books to even a casual fan....So, please respect the brainstorming, several experiments few people do to bring those unseen probabilities to life.
P.S. Jab itna paisa aur mehnat casting, shooting mey kharch kar rahe ho to thoda sa story mey bhi kar lo...
Image Source - Koleksi Stiker Atau Logo (Deltakomputer-kediri.blogspot.com)
*) - If everyone copies then by that logic Music Directors like Pritam or Anu Malik or Bappi Lahiri should be as great as AR Rahman.....NO!! because he and his team work hard to find unique permutations and combinations instead of lifting music from around the world.
*) - *Hypothetical* You want to make a Political Thriller movie. Now, mainstream Bollywood chooses copied themes, story plots. Political movies similar to USA or big European nations scene are done to death all over the word ...so a lot of stats on the Box Office Response, Critics, Budget etc are already there...for me adapting all that in your country's backdrop is no big deal. Now, many Hollywood as well as independent movie makers take risk and cover Historical Fiction stories on roads less (or not at all) traveled...like Political scenes of not so mainstream countries like Fiji, Moldova..(this is new, this is trying unique permutations-combinations)...if these risks are commercially successful then shameless Bollywood camps, big production houses copy the theme or even scene-by-scene copy the movie (this is copy, no excuse). Artist-Author Mr. Sumit Kumar while reviewing a story in Freelance Talents Championship wrote - "World is a complex place, there are so many stories which have never been told. Holocaust has been done to death - something similar could be the mass killings in Mizoram in 60's. You could write about that."
*) - I agree that volume of creative work, art created over thousands of years is humongous but still there are countless unused permutations-combinations...I guess the commercial barriers restrict people to try something new, unique and they chose 'tried and tested' safe paths over an over again...maybe thats why often a 2 minute trailer can remind 4-5 movies or books to even a casual fan....So, please respect the brainstorming, several experiments few people do to bring those unseen probabilities to life.
P.S. Jab itna paisa aur mehnat casting, shooting mey kharch kar rahe ho to thoda sa story mey bhi kar lo...
Image Source - Koleksi Stiker Atau Logo (Deltakomputer-kediri.blogspot.com)
Thursday, July 25, 2013
Tuesday, June 25, 2013
देश की कमज़ोर दूर की नज़र
बसे पहले तो उत्तराखंड त्रासदी में निस्वार्थ और निरंतर लगे सेना के जवानों, अर्धसैनिक बलो और जुडी एजेंसियों को नमन और धन्यवाद। अब मुद्दे पर आते है।
देश में आम लोगो की एक ख़ास आदत है। किसी आपदा, या राष्ट्रीय सुर्खियों में आयी घटना, अपराध से हर चीज़ अतार्किक रूप से जोड़कर देखी जाने लगती है तब तक जब तक कोई अलग, नयी घटना उन सुर्ख़ियों में ना आ जाये। अक्सर ऐसे मामलो मे पता चलता है की जनता के एक बड़े हिस्से की दूर की नज़र कमज़ोर है। हाँ ये दुर्भाग्यपूर्ण है की एक त्रासदी घटी पर उसके कारको को हटाने पर काम की बजाये दोषारोपण, हर बात मे उस दुखद घटना को घुसा देना कितना सही है?
जैसे एक कॉमिक फैन ने बाइस हज़ार की कॉमिक्स खरीदी तो उसे ऑनलाइन ये नसीहतें/ताने दिये गये की उत्तराखंड त्रासदी मे दान करना चाहिये था। क्या जो कलाकार अपने घरों से इतनी दूर आकर मेहनत कर रहे है उन्हें और उनके परिवारों को जीने के लिए पैसो की ज़रुरत नहीं? उस त्रासदी के अलावा कहीं कश्मीर मे जवानों के काफिले पर आतंकी हमले में 8 जवान मारे गए और कुछ घायल हुए ...इसी तरह और छोटी-बड़ी दुखद घटनायें हुयी .....क्या उन घटनाओ के पीड़ितों को मदद की ज़रुरत नहीं? बिल्कुल है पर आपको तो महीनो एक घटना के तले जो काटने की आदत है।
देश एक मशीन की तरह है जिसकी इकाइयाँ अपने क्षेत्र के काम करने में माहिर है, सब रुक कर एक दिशा मे जायेंगे तो देश रुक जाएगा जिस से और अधिक पीड़ित होंगे। वैसे कहने वाले कह बड़ी आसानी से देते है पर अगर देखा जाए तो उस दिशा में सबसे कम योगदान ऐसे ही लोगो का होता है। प्रकृति पर किसी का बस नहीं चलता पर खुद को व्यतिगत रूप से बदलकर अपने आस-पास के समाज को बदलने की कोशिश कीजिये, सही लोक उम्मीदवार चुनिए। इस से ज्यादा करना चाहते है तो पहले उस स्तर तक पहुँचिये जहाँ से लोगो की मदद कर पायें आप। नीचे से कोसना या बंदर घुड़की देना कुछ न करने के समान है।
- Mohit
Friday, June 7, 2013
Baali (Aryan Creations) Promo
Art - Harish A. Thakur
प्रकृति भी अपने नियमो में खुद को बाँधे रखती है। वो अपना प्रारूप बदलती है पर मानव की तरह अपने स्वार्थ साधने के लिये नहीं जिसको लाभ दिखाई देने पर नैतिकता दिखनी बंद हो जाती है, जो अपने मित्र, संबंधी को स्वार्थ के तराज़ू में तोलता है और उनसे लाभ न दिखने पर निकटता समाप्त कर देता है अथवा निकटता का नाटक करता है। जहाँ तक ऐसा मानव देख पाता है या सोचता है स्वार्थ प्रेरित कर्म उसको अपने जीवन के लिए लाभकारी प्रतीत होते है पर यही भ्रमित होकर पथभ्रष्ट होने का प्राथमिक चरण है।
धर्मपरायण जनता ईश्वर से त्राहीमाम करती कहती है की धर्म, सत्य की राह इतनी विकट क्यों है? इसका उत्तर सीधा सा है ईश्वर सत्य की राह पर चलने वाले अनेको में कुछ व्यक्तियों की परीक्षा लेते है की वो इतने सक्षम है जो कलियुग मे हर और फैले अधर्म से युद्ध कर उसे हरा पायें ....अगर कुछ परीक्षाओ बाद भी व्यक्ति सफल नहीं होता तो ईश्वर उसको या तो मूक जनता का सदस्य बना देते है जो चुप सब देखती है या वो समय के साथ अपना चरित्र खोकर अधर्म का अंग बन जाता है।
जब बाली अधर्म के साथ था तो वो शक्तिशाली था और अंतिम समय तक उसको अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा। पर इस युग में जब वो धर्म और सत्य के साथ है तो भगवान ने उसकी और उसके चरित्र की परीक्षा के लिये उसको कई सीमाओ में बाँध दिया ....बाली प्रभु की हर परीक्षा देगा ....सीमान्त तक संघर्ष करेगा।
- Mohit
Sunday, April 28, 2013
नकलची समाज (भाग - 2)
नक़ल आज के दौर में विकराल रूप ले चुकी है, समाज में इतनी रच बस चुकी है कि
अब इसे लोगो ने स्वीकार कर लिया है। किसी को बताया जाए कि भारत की तरफ से
ऑस्कर के लिए भेजी गयी एंट्री "बर्फी" में 3 दर्जन से अधिक फिल्मो के
दृश्य जस के तस दिखाए गए थे दूसरे कलाकारों पर फिल्माने के बाद तो वो कहता
है की कोई बात नहीं हमे तो मज़ा आने से मतलब है और इस्सी मानसिकता का फायदा
फिल्मो, लेखन में ही नहीं विभिन्न
माध्यमो पर लोग उठाते है। मै चौंक जाता हूँ की खुले आम नक़ल के बाद लोग
प्रमोशंस, साक्षात्कार, आदि के दौरान इतने आत्मविश्वास से कैसे कह लेते है
कि ये एक अलग काम है, हटकर है।
संयोग से कहानी का कुछ हिस्सा कहीं पहले लिखी रचना से मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं, ऐसे केसों में रचनाओ को देख कर पता चल जाता है की ये संयोग है कॉपी नहीं, और ऐसी रचनाओं से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, ये रचनाएँ खुद मे नयी और अलग है। मेरी कुछ रचनाएँ ऐसे सामाजिक मुद्दों पर लिखी गयी थी जिन मुद्दों पर आगे चलकर कुछ सालो बाद फ़िल्में, नाटक, आदि बने जो बहुत से लोगो तक पहुंचे पर मेरी रचनाएँ संयोग से उन मुद्दों पर होते हुए भी काफी अलग थी। कई लेखक या कवियों से मिला हूँ और काफी बातें की है। वो अक्सर बाहरी देशो की तरफ देखते है, विदेशी फ़िल्में, कॉमिक्स, गेम्स, किताबें, विडियोज़ देखने मे अपना काफी समय व्यतीत करते है। फिर उनके अनुसार ही अपनी रचनाएँ बनाते है।
जनता की मांग का हवाला देकर प्रकाशक ऐसा करते है। पर एक समय मे अगर बड़े प्रकाशक नया काम छापें तो लोगो के पास वही ऑप्शन होते है। कुछ पेशेवर लेखक या कवि कहते है उन्हें उनका परिवार पालना है इसलिए सीधी चोरी करते है पर जब आपमें क्षमता ही नहीं थी तो लेखन मे आये ही क्यों? नक़ल बस एक शॉर्टकट है नया, अलग काम करने मे समय लगता है जबकि कहीं से उठाया गया कांसेप्ट जल्दी पूरा हो जाता है, इस वजह से एक लेखक अगर नक़ल से साल मे 10-15 या ज्यादा किताबें पूरी कर पायेगा वहीँ बिना नक़ल किये अपनी क्षमता से वो 5-10 किताबें लिख पायेगा। पर अगर वो दूसरे माध्यमो पर से अपनी निर्भरता हटाये और मेहनत करे तो ये संख्या बढ़ सकती है, दुर्भाग्यवश ऐसा करते ना के बराबर लोग है।
कई लेखकों का भाग्य अच्छा है की जहाँ से वो अपना काम उठाते है वो मेटर आम जनता (जहाँ उनका काम बिकता है) में इतना लोकप्रिय नहीं है और उनकी गाडी सालो तक चलती रहती है। लोग कहते है कि वो महान है तभी तो इतने साल काम किया जबकि इतने सालो मे "असली" काम साहब ने गाहे-बगाहे मूड बदलने को किया होगा। चलिए पैसे और परिवार चलाने जैसे इमोशनल चोचले मान भी लें तो जिस कांफिडेंस के साथ कुछ बड़े, "अनुभवी" लेखक चोरी करने के बाद हज़रो-लाखो लोगों द्वारा अपना अभिनंदन, तारीफ़ स्वीकार करते है तो घृणा होती है इनसे। चलो काम का प्रोमोशन कर लो, अपना काम बेच लो पर जिस से चुराया है उसके सम्मान में कम से कम अपना कुत्ते की तरह प्रोमोशन तो मत करो हो सके तो असल सोर्स लिख दो काम की (ये तो करना यहाँ निषिद्ध मानते है लोग)। कहावत है की सच्चाई, कल्पना से अधिक अजीब होती है .....असल समाज से प्रेरणा लो, सच्चाई से कल्पना बनाओ, अनछुई बातें और पैटर्न ढूँढो, नए काल्पनिक समीकरण बनाओ। अगर प्रकाशक का आप पर इतना प्रेशर है तो उसके हिसाब से काम कर दो पर बीच में "अपना" काम भी दिखाओ .....अगर ऐसा नहीं कर सकते तो खुद को कलाकार, रचनाकार मत कहो। शायद यही कारण है जो मुझे ऐसे कलाकार बहुत कम मिलते है जिन्हें अपनी कला से प्रेम हो और जो अपनी कला के प्रति इमानदार हों। मेरा निवेदन है पाठको, दर्शको यानी आम लोगो से कि कला को प्रोत्साहन दीजिये पर चोरी को नहीं क्योकि कहीं न कहीं आपका प्रोत्साहन और खर्च किया हुआ पैसा ही है जो कलाकारों को चोरी की लथ लगवा देता है।
- Mohit Sharma ( Trendster)
संयोग से कहानी का कुछ हिस्सा कहीं पहले लिखी रचना से मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं, ऐसे केसों में रचनाओ को देख कर पता चल जाता है की ये संयोग है कॉपी नहीं, और ऐसी रचनाओं से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, ये रचनाएँ खुद मे नयी और अलग है। मेरी कुछ रचनाएँ ऐसे सामाजिक मुद्दों पर लिखी गयी थी जिन मुद्दों पर आगे चलकर कुछ सालो बाद फ़िल्में, नाटक, आदि बने जो बहुत से लोगो तक पहुंचे पर मेरी रचनाएँ संयोग से उन मुद्दों पर होते हुए भी काफी अलग थी। कई लेखक या कवियों से मिला हूँ और काफी बातें की है। वो अक्सर बाहरी देशो की तरफ देखते है, विदेशी फ़िल्में, कॉमिक्स, गेम्स, किताबें, विडियोज़ देखने मे अपना काफी समय व्यतीत करते है। फिर उनके अनुसार ही अपनी रचनाएँ बनाते है।
जनता की मांग का हवाला देकर प्रकाशक ऐसा करते है। पर एक समय मे अगर बड़े प्रकाशक नया काम छापें तो लोगो के पास वही ऑप्शन होते है। कुछ पेशेवर लेखक या कवि कहते है उन्हें उनका परिवार पालना है इसलिए सीधी चोरी करते है पर जब आपमें क्षमता ही नहीं थी तो लेखन मे आये ही क्यों? नक़ल बस एक शॉर्टकट है नया, अलग काम करने मे समय लगता है जबकि कहीं से उठाया गया कांसेप्ट जल्दी पूरा हो जाता है, इस वजह से एक लेखक अगर नक़ल से साल मे 10-15 या ज्यादा किताबें पूरी कर पायेगा वहीँ बिना नक़ल किये अपनी क्षमता से वो 5-10 किताबें लिख पायेगा। पर अगर वो दूसरे माध्यमो पर से अपनी निर्भरता हटाये और मेहनत करे तो ये संख्या बढ़ सकती है, दुर्भाग्यवश ऐसा करते ना के बराबर लोग है।
कई लेखकों का भाग्य अच्छा है की जहाँ से वो अपना काम उठाते है वो मेटर आम जनता (जहाँ उनका काम बिकता है) में इतना लोकप्रिय नहीं है और उनकी गाडी सालो तक चलती रहती है। लोग कहते है कि वो महान है तभी तो इतने साल काम किया जबकि इतने सालो मे "असली" काम साहब ने गाहे-बगाहे मूड बदलने को किया होगा। चलिए पैसे और परिवार चलाने जैसे इमोशनल चोचले मान भी लें तो जिस कांफिडेंस के साथ कुछ बड़े, "अनुभवी" लेखक चोरी करने के बाद हज़रो-लाखो लोगों द्वारा अपना अभिनंदन, तारीफ़ स्वीकार करते है तो घृणा होती है इनसे। चलो काम का प्रोमोशन कर लो, अपना काम बेच लो पर जिस से चुराया है उसके सम्मान में कम से कम अपना कुत्ते की तरह प्रोमोशन तो मत करो हो सके तो असल सोर्स लिख दो काम की (ये तो करना यहाँ निषिद्ध मानते है लोग)। कहावत है की सच्चाई, कल्पना से अधिक अजीब होती है .....असल समाज से प्रेरणा लो, सच्चाई से कल्पना बनाओ, अनछुई बातें और पैटर्न ढूँढो, नए काल्पनिक समीकरण बनाओ। अगर प्रकाशक का आप पर इतना प्रेशर है तो उसके हिसाब से काम कर दो पर बीच में "अपना" काम भी दिखाओ .....अगर ऐसा नहीं कर सकते तो खुद को कलाकार, रचनाकार मत कहो। शायद यही कारण है जो मुझे ऐसे कलाकार बहुत कम मिलते है जिन्हें अपनी कला से प्रेम हो और जो अपनी कला के प्रति इमानदार हों। मेरा निवेदन है पाठको, दर्शको यानी आम लोगो से कि कला को प्रोत्साहन दीजिये पर चोरी को नहीं क्योकि कहीं न कहीं आपका प्रोत्साहन और खर्च किया हुआ पैसा ही है जो कलाकारों को चोरी की लथ लगवा देता है।
- Mohit Sharma ( Trendster)
Wednesday, April 24, 2013
नकलची समाज (भाग - 1)
नकलची समाज (भाग - 1)
रचनात्मक कार्यो में मुझे नक़ल से सख्त नफरत है और ये बात मैंने पहले भी अपनी रचनाओ, लेखों में रखी है।
मेरे कुछ अच्छे दोस्तों ने मुझसे कहा कि उन्हें नक़ल/चीटिंग का मतलब समझाऊँ।
तो इन दो लेखों से समझाने की कोशिश करता हूँ, पहली कड़ी आज लिख रहा हूँ।
नक़ल करने का अर्थ है किसी कि रचना को उठा कर अपने तरीके से कर देन। सब तो बैठे-बिठाये मिल गया, एक रचना से जुड़ीं जो महत्वपूर्ण बातें है वो तो आपने की ही नहीं तो आप सच्चे रचनाकार कहाँ हुआ, आप एक तरह से अच्छे प्रबंधक, संपादक कहे जा सकते है पर रचनाकार नहीं। मै यहाँ लेखन के क्षेत्र से उदाहरण दूंगा जो दूसरे पेशों पर भी लागू होतें है, अधिकतर लोकप्रिय रचनाओ कि बेशर्मी से चोरी की जाती है क्योकि लेखक और प्रकाशक सोचते है कि ऐसा करना एक सुरक्षित निवेश का निर्णय है क्योकि दूसरे देशो के पाठक वैसी कहानियों को सराह चुके है तो यहाँ भी उनकी स्वीकृति की गुंजाइश बढ़ जाती है। एक गलत धारणा ये भी रहती है मन मे की इतनी बड़ी दुनिया मे हर तरह की चीज़ लिखी जा चुकी है, की जा चुकी है तो अब कुछ भी नया या ओरिजनल नहीं बनाया जा सकता।
आप अगर गौर करें तो हर किताब, फिल्म में घटनाओं का क्रम, कहानी का फ्लो आदि अलग रहता है और कुछ संवाद, घटना अलग रहती है पर मुख्य कहानी का आईडिया नक़ल रहता है, अगर इतनी ही मजबूरी और दबाव है हमे एक फिल्म में कुछ अलग सीन्स और संवाद की जगह पूरी फिल्म को नए संवाद और अलग सीन्स देने की कोशिश करनी चाहिए और कहानी को छोटी-छोटी इकाइयों मे बांट कर देखना चाहिए की वो कुछ नयी और अलग लग रही है या नहीं।
अब देता हूँ कॉपी या नक़ल पर अपना निष्कर्ष, बात नया काम करने कि तो बाद में आती है पर आपका काम और कहानी में वर्णित घटनाएँ अब तक आयीं रचनाओं से अलग तो हों, पाठको को लगे तो सही की आपने मेहनत कि है। अगर आपकी कहानी पढ़ते हुए दिमाग में कोई विदेशी कॉमिक, किताब, सीरियल, फिल्म आ जाए तो ये बेशर्मी से की गयी नक़ल है। आप सुरक्षित खेल रहे हो (और अपना समय, धन बचाना चाहते हो) पर लम्बे समय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने के लिए अपने अलग पहचान चिन्ह होना ज़रूरी है, कुछ लोग तो हद ही कर देते है जो ओरिजिनल कहानी का क्रम तक ज्यूं का त्यूं रखते है। ये बहाना देना कि अलग कहानियों को पाठक पसंद नहीं करेंगे तो यह आपकी भूल है, विश्व में कई ऐसे प्रकाशक है जो लगातार अलग काम कर रहे है और सफल है।
ये एक बहुत बड़ी चोरी है पर विडंबना यह है कि इस अपराध की कोई सज़ा नहीं है, और जिस देश में बड़ी सज़ा वाले अपराधो की संख्या इतनी अधिक है उसमे बिना सज़ा वाले अपराध की क्या औकात होगी? नए वाकये, लोग, बातें यहीं हमारे सामने है बस उन्हें महसूस कर पहचानने की ज़रुरत है। पेशेवर लेखकों, कवियों पर अगले लेख में प्रकाश डालूँगा अभी शौकिया चोरों की हरकतें देखते है। इंटरनेट की अनंत दुनिया का फायदा उठा कर कुछ लोग बड़ी शान से दूसरो के काम को अपना नाम दे देते है (कभी कबार अपने दोस्तों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ लोग ऐसा करते है और कभी-कभी ऐसा करना चल जाता है पर लगातार हर दूसरे-तीसरे दिन आदतवश नहीं), फिर ये आदत बन जाती है, ज़रा सी तारीफ़ के लिए झूठे दावे किये जाते है और नक़ल का स्तर बढ़ जाता है। धीरे-धीरे इनके बिना कुछ किये इनके हजारो-लाखों प्रशंषक बन जाते है और तब ये लोग पीछे न हटने वाली स्थिति में आ जाते है। और जिन कलाकारों का काम चोरी किया जाता है वो नेट के किन्ही छोटे से कोनो में लोगो कि प्रतिक्रिया के लिए तरसते रह जाते है। आप अपना समय और मेहनत किसी और काम में लगा सकते है। 1-2 साल बाद कोई महान हस्ती आपकी इस नक़ल कि समीक्षा नहीं करने वाली, कोई विकिपीडिया पेज नहीं बनने वाला आपका ऐसा करके। तो यही निवेदन है की आज आज से ही नक़ल को तौबा कीजिये क्योकि अपने देश में पहले से ही बहुत से फ्री की खाने वाले प्रीतम, बप्पी लहरी जैसे लोगो की फ़ौज पड़ी है।
.............क्रमशः
- मोहित शर्मा (ट्रेंडी बाबा)
नक़ल करने का अर्थ है किसी कि रचना को उठा कर अपने तरीके से कर देन। सब तो बैठे-बिठाये मिल गया, एक रचना से जुड़ीं जो महत्वपूर्ण बातें है वो तो आपने की ही नहीं तो आप सच्चे रचनाकार कहाँ हुआ, आप एक तरह से अच्छे प्रबंधक, संपादक कहे जा सकते है पर रचनाकार नहीं। मै यहाँ लेखन के क्षेत्र से उदाहरण दूंगा जो दूसरे पेशों पर भी लागू होतें है, अधिकतर लोकप्रिय रचनाओ कि बेशर्मी से चोरी की जाती है क्योकि लेखक और प्रकाशक सोचते है कि ऐसा करना एक सुरक्षित निवेश का निर्णय है क्योकि दूसरे देशो के पाठक वैसी कहानियों को सराह चुके है तो यहाँ भी उनकी स्वीकृति की गुंजाइश बढ़ जाती है। एक गलत धारणा ये भी रहती है मन मे की इतनी बड़ी दुनिया मे हर तरह की चीज़ लिखी जा चुकी है, की जा चुकी है तो अब कुछ भी नया या ओरिजनल नहीं बनाया जा सकता।
आप अगर गौर करें तो हर किताब, फिल्म में घटनाओं का क्रम, कहानी का फ्लो आदि अलग रहता है और कुछ संवाद, घटना अलग रहती है पर मुख्य कहानी का आईडिया नक़ल रहता है, अगर इतनी ही मजबूरी और दबाव है हमे एक फिल्म में कुछ अलग सीन्स और संवाद की जगह पूरी फिल्म को नए संवाद और अलग सीन्स देने की कोशिश करनी चाहिए और कहानी को छोटी-छोटी इकाइयों मे बांट कर देखना चाहिए की वो कुछ नयी और अलग लग रही है या नहीं।
अब देता हूँ कॉपी या नक़ल पर अपना निष्कर्ष, बात नया काम करने कि तो बाद में आती है पर आपका काम और कहानी में वर्णित घटनाएँ अब तक आयीं रचनाओं से अलग तो हों, पाठको को लगे तो सही की आपने मेहनत कि है। अगर आपकी कहानी पढ़ते हुए दिमाग में कोई विदेशी कॉमिक, किताब, सीरियल, फिल्म आ जाए तो ये बेशर्मी से की गयी नक़ल है। आप सुरक्षित खेल रहे हो (और अपना समय, धन बचाना चाहते हो) पर लम्बे समय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने के लिए अपने अलग पहचान चिन्ह होना ज़रूरी है, कुछ लोग तो हद ही कर देते है जो ओरिजिनल कहानी का क्रम तक ज्यूं का त्यूं रखते है। ये बहाना देना कि अलग कहानियों को पाठक पसंद नहीं करेंगे तो यह आपकी भूल है, विश्व में कई ऐसे प्रकाशक है जो लगातार अलग काम कर रहे है और सफल है।
ये एक बहुत बड़ी चोरी है पर विडंबना यह है कि इस अपराध की कोई सज़ा नहीं है, और जिस देश में बड़ी सज़ा वाले अपराधो की संख्या इतनी अधिक है उसमे बिना सज़ा वाले अपराध की क्या औकात होगी? नए वाकये, लोग, बातें यहीं हमारे सामने है बस उन्हें महसूस कर पहचानने की ज़रुरत है। पेशेवर लेखकों, कवियों पर अगले लेख में प्रकाश डालूँगा अभी शौकिया चोरों की हरकतें देखते है। इंटरनेट की अनंत दुनिया का फायदा उठा कर कुछ लोग बड़ी शान से दूसरो के काम को अपना नाम दे देते है (कभी कबार अपने दोस्तों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ लोग ऐसा करते है और कभी-कभी ऐसा करना चल जाता है पर लगातार हर दूसरे-तीसरे दिन आदतवश नहीं), फिर ये आदत बन जाती है, ज़रा सी तारीफ़ के लिए झूठे दावे किये जाते है और नक़ल का स्तर बढ़ जाता है। धीरे-धीरे इनके बिना कुछ किये इनके हजारो-लाखों प्रशंषक बन जाते है और तब ये लोग पीछे न हटने वाली स्थिति में आ जाते है। और जिन कलाकारों का काम चोरी किया जाता है वो नेट के किन्ही छोटे से कोनो में लोगो कि प्रतिक्रिया के लिए तरसते रह जाते है। आप अपना समय और मेहनत किसी और काम में लगा सकते है। 1-2 साल बाद कोई महान हस्ती आपकी इस नक़ल कि समीक्षा नहीं करने वाली, कोई विकिपीडिया पेज नहीं बनने वाला आपका ऐसा करके। तो यही निवेदन है की आज आज से ही नक़ल को तौबा कीजिये क्योकि अपने देश में पहले से ही बहुत से फ्री की खाने वाले प्रीतम, बप्पी लहरी जैसे लोगो की फ़ौज पड़ी है।
.............क्रमशः
- मोहित शर्मा (ट्रेंडी बाबा)
Thursday, March 28, 2013
Chor ka Logic!!!
....Filmy Clicheness, Jo wakai mein chor NAHI hota wo bhi to ye hi bolega Uncle ki "Mai Chor NAHI hun..."
"Maine Chori Nahi ki..."
"Chup! Har chor ye hi bolta hai..."
"To jo chor nahi hai wo bhi to wo kya bolega?....Mai Tumhare bachche ki maa banne waali hun!!!"
- Mohit Sharma (Trendster / Trendy Baba)
Wednesday, March 27, 2013
Meri Bhaang Wali Ice Cream !!!! (Poem, 18+)
Masti mey ye rhyming ki hai hip hop style with naughty punches. Aap sabhi ko ek baar phir se Happy Holi!!! Just for fun...
Meri Bhaang Wali Ice Cream !!!!
Aetbaar karegi to jaanegi….
Labo se lagayegi to baat maanegi…
Dil bolega tring-tring….jo legi tu..
Meri Bhaang waali Ice Cream !!!!
Pila deta hai ye saaki bade auhdo tak ko paani….
Ek to fitting ka salwar-suit tera…
Aur doosra qatil tera dupatta Dhaani…
Ban jaa janeman mere naatiyon ki Nani…
Nikalva degi teri multiple Screams…
Meri Bhaang waali Ice Cream !!!!
Festive season ki chhut mujhe bhunani…
Point Blank range se apni pichkari hai chalani…
Free ki nahi hai ye Ice Cream…teri haath ki ghujiya hai khaani….
Itne nakhre sehat kharab kar denge meri Rani....
Kar degi tera har signal Green...
Meri Bhaang waali Ice Cream !!!!
Uncle nahi hai ghar pe…
Nashe mey apna ghar samajh ke abhi unhe aadhe ghante peeche ke gharo ki kundi hai khatkhatani...
Anyway, phir bhi chhupa di hai maine unki bandook Dunali…
Ab ye teri zimmedari hai…..tumhe sirf Aunty hai sulaani…
Kab samjhogi bada ho gaya hai….teri colony ka Chhota Bheem….le na..
Meri Bhaang waali Ice Cream !!!!
Gum ho jaayegi teri double chin…
Mera Intezaar karegi taare gin-gin…
Phir chahe jab bhi milegi…gaal par haath phira kar bolegi…”How have you been?”
Jamegi apni tagdi tag team…
Bhaang ki kick better than vodka-desi-rum ya jin….
Ghoomayegi muft mey tujhe London se Chin…
Charsi ho gaya tere pehlu ke bin…
Mat kar mera dil tod ke sin…
Jaldi muh mey le…arre, ab to pakad…pighalne lagi hai…
Meri Bhaang Waali Ice Cream !!!!
- Mohit Sharma (Trendy Baba)
Tuesday, March 26, 2013
Ishq mey Chloroform
Ishq mey Chloroform
-
Mohit Sharma (Trendster / Trendy Baba)
Ronit apne mohalle ki Rinnie naam ki ladki par flat tha. Dono jawan the, ek hi college mey padhte the, hesiyat mey bhi zyada antar nahi tha aur caste bhi ek thi. Matlab jaise kisi marathon runner ne 1-2 kilometers ki lead le li ho runner-up se. Cake Walk! Par Ronit ko baat taalne ki badi aadat thi. Rinnie use dekh kar muskurati thi, hint deti thi aur different prakaar ki mada aakarshan demonstration waali harkaten karti thi par saath engineering k baad MBA k bhi 2 saal ho gaye to Rinnie ko laga ye banda Lolu-Chand hai.
Ronit sahi
mauke aur build up mey vishvaas rakhta tha. Rinnie k papa Mr. Pralay Pandit
festivals mey us colony ki Samiti k swaghoshit sachiv the jabse wo aaye the
colony mey. Ronit unko impress karne k liye kuch saalo se festivals par kaafi
mehnat kar raha tha jis se Mogambo…..I mean Uncle ji khush bhi huey. Kai
seasons mey lagataar aakhri moment par himmat jutane mey fail hone k baad Is
baar usne decide kiya ki Diwali ka mauka achchha hai shaadi ki baat direct
achchhe mood mey Uncle ji k saamne rakhne ka. Ronit ko 2 din pehle pata chala
ki is baar Pandit family 2 shaadi attend karne
Gwalior jaa rahe hai. Ronit ne bina baat k Madhav Rao Sindhiya ji ko
kosa kyoki wahi ek naam tha Gwalior se related uske zehan mey.
Ab baari thi
next big festival Holi ki, to Holi waale month mey Ronot k ghar Rinnie ki
engagement ka invitation aaya, pata chala ki shaadi bhi April mey hi hai. Ronit ne April mey paida huey apne ek
dost ko ashleel gaaliyan suna kar apna krodh shaant kiya (kyoki April month se
related wahi banda pehle dimaag mey aaya Ronit k).
Orthodox aur
andhvishvaadi Pandit ji ka parivaar, Rinnie ko ab kisi ki nazar na lag jaaye
isliye bechari duniya se alag total lockdown ki jaa chuki thi. Ronit ne decide
kiya ki wo aaj raat hi Rinnie ko manane ki kosish karega chupke se. Ronit
rassi, slice ki bottle (pata nahi kyu laya gadha), torch, mask, chloroform
(emergency k liye….aur rumaal bhul gaya sunghayega kaise/kisko ye ek sawal tha)
lekar bagal k pipe se chadhne laga par lagta hai uspar shani ki dasha chal rahi
thi Pipe se girkar wo bagal waale lawn ki ghaas kaatne waali machine par gira.
“AAAAAAAIIIIIIIIEEEEEEEEE…..Mummy!!!”
Usne kisi
tarah dard control kiya, kuch serious to nahi hua tha par uska pairon mey mocha
a gayi thi, haath-pair chhil bhi gaye the aur Slice ki bottle bhi fat gayit
thi. Wo kuch samay tak dard k mare nirjeev pada raha, aesa lag raha tha jaise
woe k laash hai bas antar ye tha uske charo taraf khoon ki jagah mango juice faila
hua tha.
Tabhi usko
ek aawaz ne instant-sanjivni ki tarah attention mode mey khada kar diya kuch
nanoseconds mey.
“Kaun hai
wahan? Mai shor machaungi....wait...Utho!”
“Ronit! are
you OK? Chot to nahi lagi? Ye sab karne ki kya zaroorat thi. College mey hi bol
dete…I like you too. Ye chloroform kyu? Kidnap karoge kya?”
“Naina, wo baat nahi hai….”
Tabhi Naina ki mummy ki aawaz aayi andar se jo is aur badh
rahi thi.
“Ye kaisi
aawaz thi kaun hai wahan? Naina Beta kya toota?”
Naina ki
mummy ki aawaz se to jaise dono ki mummy si mar gayi.
Naina - “Ab
kya Karen? Mummy maar daalengi mujhe…”
Ronit – “Mai
cooler ki aad mey chhup jata hun andhere mey…”
Naina – “Tum
Mummy ko nahi jaante, aayin hai to sab check karke jayegi poori tassalli se, dekho wo
paanch rupaye waali one beam torch leke aa rahi hai.”
Ronit – “Mai
chloroform to laya hun par hanky bhool gaya ghar pe, ab kya karun?”
Naina – “Hey
Bhagwan…..”
Tabhi Mummy
close in flieder ki tarah agrasar hui aur Ronit cooler ki aad mey hua.
“Kaun tha
wahan?”
Naina – “Koi
dikha nahi, Maa…ped ki side dekho.”
“Pehle ghar
ki side dekhungi…”
Yaani ab
Naina ki Mummy ki 'use and throw' torch aur Ronit k beech 10-12 seconds ka antar
tha. Naina ki mummy palti aur Naina ne Suresh Raina ki si furti dikhate hue apna
duppatta utaara aur mummy ki one beam torch k upar se Ronit ko timely paas kiya
jisme chloroform duppatte par lagayi aur beam ko cover karte hue Bombastic
fidayin hamla kiya jisme aunty off guard caught hui aur Out hui!
Naina ki
baaton aur harkaton ne Ronit ko bataya ki usko Naina kitna chahti hai.
Jaate-jaate 2-4 chummiyan exchange hui aur agli Diwali Ronit rishta lekar Naina
k ghar pahuncha.
….Samaptam!!!!
Moral of the Story – Dil jo hai wo beauty se kahin decade zyada durable hota hai on an
average to logo k dil ko dekho. Jo tumhe pyaar kare usko apnao, uske peechhe bhaagne
se faayda nahi jiski priorities ka tum hissa na ho.
....aur Trendy Baba k darbaar mey chanda chadhane se manchaha rishta
milta hai given aapke chande ka amount chindi-chor type na ho.
Pic Courtesy - Mr. Harjeet Singh Chadha
Monday, March 18, 2013
Pagli Rap (Fiction Comics)
Pagli Rap! Happy Holi Everyone!
Drunk Drivers today are my toys Roly-Poly !!
Perverts stare/touch at your own risk…Ouch! My electric Ghaghra-Choli !!
I know…I look like a cute Barbie-Dolly…but my slams are like Hardcore Holly!!
Have fun, Ghujiyas, play safe make some Tolis…kids stay away from dirty Boli !!
Wish You All a Happy-Prosperous-Holy Holi !!
Drunk Drivers today are my toys Roly-Poly !!
Perverts stare/touch at your own risk…Ouch! My electric Ghaghra-Choli !!
I know…I look like a cute Barbie-Dolly…but my slams are like Hardcore Holly!!
Have fun, Ghujiyas, play safe make some Tolis…kids stay away from dirty Boli !!
Wish You All a Happy-Prosperous-Holy Holi !!
Sunday, March 17, 2013
अधूरी रस्म (Rajan Iqbal Reborn Series)
शुभानन्द कृत राजन-इक़बाल रिबोर्न सिरीज़ # 6 - "कब्र का रहस्य" कि
पहली काव्य प्रस्तावना हाज़िर हूँ। जहाँ एक देशभक्त पिता का साया अपने बेटे
से मुखातिब है।
अधूरी रस्म
फ़ासलों कि ज़बानी कह गयी ....
रास्तों कि कहानी कह गयी ...
अरसो वाली ईद कि तैयारी ....चंद पलो मे वीरानी रह गयी ...
मौसम को सजदा करती फसल .....तेरे इंतज़ार मे खड़ी रह गयी।
खुशियाँ साथ बांटने की बात से बरगलाया,
फितरत में झूठ बोलकर उसका दिल बहलाया ....
रह गया ये मलाल बाद तक ....
दीवाना मेरी कब्र पर गुलाल ले आया।
कुछ फकीरों के एहसान रहे मुझपर ...
वतन कि उन गलियों का मेरा क़र्ज़ चुका देना ....
काश बुज़दिली और मजबूरी का फर्क समझाने का वक़्त होता ....
ज़मीन पर पड़े पुराने ख़त उनके पतों पर पहुँचा देना।
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
न वो दिखता, ना वो छुपता ...बरसता जब आसमां से पाक रहम ....
भरोसा रख तू ऐ बंदे जल्द साथ देंगे मौसम ...
गिले-शिकवे, दगा-धोखे ....गला देगी हवा वो नम।
सियासतदान तुमसे मेरा अक्स मिलाते होंगे ...
बस मेरे अंजाम से अपना अंजाम मत मिला लेना।
शाम को हाथ मे पिघलने न देना ...
अगर लफ़्ज़ों पर पाबंदी लगे उनकी ....तो मन में दुआ पढना ...
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
न जाने कितनी गोलियों पर नाम है तेरे वालिद का ...
अदब से उन सब को अपनी मयान मे सजा लेना।
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
मंजिलों के इश्क मे ज़ालिम रास्तों के हाथो,
हजारों शिकार यूँ जो मरते .....
रेगिस्तान मे नादानी से उगे पौधे,
सावन के आने का इशारा नहीं करते .....
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
चुड़ैल सी मुझपर चढ़ी वतन की मोहब्बत ...अपनों के प्यार पर इस कदर पड़ी भारी,
मै तो फिर कभी गाँव आ ना सका ....तुम घर वापस ज़रूर लौट जाना।
- Mohit
फ़ासलों कि ज़बानी कह गयी ....
रास्तों कि कहानी कह गयी ...
अरसो वाली ईद कि तैयारी ....चंद पलो मे वीरानी रह गयी ...
मौसम को सजदा करती फसल .....तेरे इंतज़ार मे खड़ी रह गयी।
खुशियाँ साथ बांटने की बात से बरगलाया,
फितरत में झूठ बोलकर उसका दिल बहलाया ....
रह गया ये मलाल बाद तक ....
दीवाना मेरी कब्र पर गुलाल ले आया।
कुछ फकीरों के एहसान रहे मुझपर ...
वतन कि उन गलियों का मेरा क़र्ज़ चुका देना ....
काश बुज़दिली और मजबूरी का फर्क समझाने का वक़्त होता ....
ज़मीन पर पड़े पुराने ख़त उनके पतों पर पहुँचा देना।
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
न वो दिखता, ना वो छुपता ...बरसता जब आसमां से पाक रहम ....
भरोसा रख तू ऐ बंदे जल्द साथ देंगे मौसम ...
गिले-शिकवे, दगा-धोखे ....गला देगी हवा वो नम।
सियासतदान तुमसे मेरा अक्स मिलाते होंगे ...
बस मेरे अंजाम से अपना अंजाम मत मिला लेना।
शाम को हाथ मे पिघलने न देना ...
अगर लफ़्ज़ों पर पाबंदी लगे उनकी ....तो मन में दुआ पढना ...
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
न जाने कितनी गोलियों पर नाम है तेरे वालिद का ...
अदब से उन सब को अपनी मयान मे सजा लेना।
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
मंजिलों के इश्क मे ज़ालिम रास्तों के हाथो,
हजारों शिकार यूँ जो मरते .....
रेगिस्तान मे नादानी से उगे पौधे,
सावन के आने का इशारा नहीं करते .....
अधूरी रहीं वो पुरानी रस्म निभा देना ...
चुड़ैल सी मुझपर चढ़ी वतन की मोहब्बत ...अपनों के प्यार पर इस कदर पड़ी भारी,
मै तो फिर कभी गाँव आ ना सका ....तुम घर वापस ज़रूर लौट जाना।
- Mohit
Friday, March 8, 2013
Not a Potential Rapist!!!
Apne kuch jigri doston (naam nahi likhunga) se khul kar baaten kar pata
hun. Halaki, ab Lucknow chhut gaya to ye cheez miss karunga. Unhi khaas
dosto mey se ek k saath baitha tha mai last month.
Dost - "Ye heading padh, likha hai...every man is a potential rapist..."
Mohit - "Nahi!!! Maafi sarkaar maafi de do mujhe.....yaar yahan to
baksh de TV, Internet, Akhbar, Society...sab jagah blame karoge to kisi
din bina crime kiye in blames ka hawala dekar jail mey guilty feel karta
hua life kaatunga..."
Dost - "Kaisi Life Inspector Vinay??? Fansi milni chahiye tujhe..."
Mohit - "To tu bhi marega soch lo....ya phir OMG aaj pata chala mera
dost mard nahi hai...ha ha ha...medical report k baad jail ka doctor
kahega...jaa Shikhandi ji le apni zindagi...."
Dost - "Achchha ek baat bata teri favorite actress, athletes kaun hai....matlab skip a beat...wonder woman type..."
Mohit - "Aajkal to Esha Gupta achchhi lag rahi hai, sports mey Ana Ivanovic...aur bhi hai kuch....kyu?"
Dost - "Achchha imagine kar....tu kahin ka raja hai, tu matlab us desh
ka supreme hai tujhe koi darr nahi hai, kuch bhi kar....koi nahi
pakadega tujhe...tab tujhe sunsaan sadak par koi Ana Ivanovic ya Esha
Gupta jaisi ladki mil jaaye..."
Mohit - "C grade horny movie ka hero bana de mujhe kaminey...."
Dost - "Sun to....khuli chhut hai...koi darr nahi, bandish nahi...kya tu us ladki ka rape karega?"
Mohit - "Nahi...koi chance hi nahi hai."
Dost - "Bhai ko khush karne ko mat bol sach bata....mujhse sach bol
sakta hai Bhai...chal tu nashe mey hai...dimaag mannd ho gaya hai kuch
der k liye...tab karega uska rape?"
Mai darr gaya ye sochkar,
kya karunga mai tab? Kya mai rape kar dunga us ladki ka? Maine pehli
baar khud ko kisi aur vyakti k angle se rape karte dekha...us ek second
mey hi mai bas kya bataun...hil gaya...
Mohit - "Bhai..maan li
teri baaten ki mai raja hun, mujhe koi darr nahi, mai supreme hun, koi
saza nahi hone waali mujhe, mera dimaag mand pad gaya hai....par jab wo
ladki chillayegi, royegi na to mere haathon ki pakad apne aap dheeli pad
jaayegi....aage kuch nahi karega tera bhai....ye antar hota hai mard
aur jaanvar mey..."
Dost khush hokar gale lag gaya.
Dost - "Mohit Bhai dil khush kar diya...mai yahi test kar raha tha..."
So, ye hai mera conclusion.....
"Mana India mey 1-2 Australia ki population jitne dooshit mansikta waale purush hai
par unke liye 4-5 Russia ki population jitne sahi purusho par gaaj kyu? Kyoki jab laws
banti hai to unke ghere mey kai nirdosh bhi pis jaate hai. Ye kaisi
victim mentality hai ki doosre group (is case mey gender) k har bande ko
criminal bata do. Majority of men would never rape anyone. Men don't
just rape people because they feel horny, it's not that basic. Most can
resist the lust they have....many men can see what they are doing is
wrong. Can I be swayed by my anger and turned into a murderer? Nope.
People can't just be "swayed" by emotions and turned into something they
weren't already.
Don't trust the secondary info sources to the
level that they brainwash you...understand other aspects related to the
matter and VERIFY!!!.....Every man has the ability to rape, but so
what? If a man has the ability to rape, would you call him a 'potential
rapist'? Every woman has the ability to kill a baby, does that mean
every woman is a potential child killer? Everyone (except disabled
people) has the ability to kill, does that make everyone a potential
serial killer?....Every human being has the potential to be anything.
Rape is not an act of lust nor is it gender specific. Rape is an act of
power and violence. Women rape fellow humans every day. Yes, I mean
actual sexual assault kind of rape. Men are just more associated with
rape because, as a group, they tend to be more physically violent than
women."
- Mohit Sharma (Trendster)
Saturday, January 26, 2013
Friday, January 25, 2013
वो कोई पीर रहा होगा... (Netaji Subash Chandra Bose Tribute)
A Tribute to Netaji Subash Chandra Bose
ग़ुलामी के साये मे जो आज़ाद हिन्द की बातें करता था ...
किसी दौर मे खून के बदले जो आज़ादी का सौदा करता था ...
बचपन मे ही स्वराज के लिये अपनों से दूर हुआ होगा ...
बस अपनी सोच के गुनाह पर जो मुद्दतों जेल गया होगा ...
वो कोई पीर रहा होगा ....
क्या बरमा ...अंडमान ..
क्या जर्मनी ...जापान ...
शायद ये जहाँ था उसके लिए छोटा ...
किसी दौर ने गोरो पर बंगाली जादू चढ़ते देखा होगा ..
फरिश्तो ने जिसका सजदा किया होगा ....
वो कोई पीर रहा होगा ....
अंदर सरपरस्त साधू .... बाहर पठान का चोगा ...
खुद की कैद को उसने अपनी रज़ा पर छोड़ा था ..
अंग्रेजो की आँखों का धोखा ....
कहाँ ऐसा हिन्द का हमनवां होगा ..
वो कोई पीर रहा होगा ...
जहान को कुछ बताने ..रविन्द्र सी ग़ज़ल सुनाने ...
या शायद धूप-छाँव का हिसाब करने ज़मी पर यूँ ही आ गया ..
न उसके आने का हिसाब था ..और न जाने का ...
और कहने वाले कहते है वो 1945 के आसमां मे फ़ना हो गया ...
काश रूस पर सियासी बर्फ़ न जमा होती ...
अगर ये बात सच होती तो अनीता-एमिली की आँखों ने दगा दिया होगा ...
गाँधी से जीतकर भी जिसने महात्मा को जिया होगा ...
वो कोई पीर रहा होगा ...
वाकिफ जिंदगी मे जो कभी रुक न सका ....
गुमनामी मे दरिया पार किया होगा ...
दूर कहीं या पास यहीं कितनी मायूसी मे मुल्क को जीते-मरते देखा होगा ...
आज़ाद होकर अपने ज़हन से दूर हुआ होगा ...
वो कोई पीर रहा होगा...
वो कोई पीर रहा होगा...
Tuesday, January 22, 2013
Sunday, January 6, 2013
मंद है यह समाज! Kavya Comic (Advertisement)
मंद है यह समाज! Kavya Comic (Advertisement) with a shayari, experimental manual coloring here. *Art - Soumendra.
कहते है वो की मै दुनिया की दौड़ के काबिल नहीं .. .
कुछ माखौल उड़ाते है तो कुछ को तरस आता है ..
कैसी यह दौड़ है जिसमे पैसो के लिये भावनाओं को कुचला जाता है?
नहीं दौड़ना तुम्हारे साथ ...मै तुमसा क़ातिल नहीं।
तेज़ तन पर गुमान करने वालो ..एक सौदा करलें आओ,
मेरा साफ़ मन भी ले लो ...बदले मे मुझे एक खूबसूरत जहान देते जाओ।
- Mohit Sharma
कहते है वो की मै दुनिया की दौड़ के काबिल नहीं .. .
कुछ माखौल उड़ाते है तो कुछ को तरस आता है ..
कैसी यह दौड़ है जिसमे पैसो के लिये भावनाओं को कुचला जाता है?
नहीं दौड़ना तुम्हारे साथ ...मै तुमसा क़ातिल नहीं।
तेज़ तन पर गुमान करने वालो ..एक सौदा करलें आओ,
मेरा साफ़ मन भी ले लो ...बदले मे मुझे एक खूबसूरत जहान देते जाओ।
- Mohit Sharma
Saturday, January 5, 2013
Janta Robots Zindabad!!
llll Janta Robots llll **Black Comedy-Satire**
Ye ek satire hai India k adhiktar politicians par jo janta virodhi
activities karne k baad bhi press conferences-public appearances mey
janta k hiteshi bane rehte hai...doosro k dard, dukh par rajneeti
karte hai, bina soche samjhe aag mey ghee daalne jaise bayaan de dete
hai....rajneeti mey aane se apni maut tak rajneeti hi karte rehte
hai...iska udeshya kisi ko thes pahunchana bilkul nahi hai. - Mohit Sharma (Trendster/Trendy Baba) with artist Dheeraj DK Boss
Friday, January 4, 2013
The Environmentorial (Newspaper)
Namastey! :) So, This is my third newspaper after
The Indus Litmus and World Comics & Graphic Novel News (WCGNN) -
(thanks to paper.li website) Below is the paper weblink.
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